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              पता नहीं,  इस तरह का दोहरा जीवन दुनिया में किसी और का  होगा ? बड़े गुप्त रूप से कूकी अपना संसार रचती जा रही थी। जिस संसार मे ना तो अनिकेत था, ना उसके बच्चें थे, ना मुम्बई महानगर था ना घर  की छत के ऊपर का बगीचा था और ना ही कोई सगे  सम्बन्धी  थे। दूसरों की आँखों के सामने वह संसार  नजर नहीं आ रहा था मगर उसका एक अस्तित्व था।  उस अनोखे  जहान में कुछ पात्र थे, जो उसे खोजते थे, उसकी जरुरत को अनुभव करते थे। किसी का हँसना, रोना उसके मूड़ पर निर्भर करता था। कोई ऐसा भी था जो उसके चेहरे पर मुस्कराहट ला देता था।
              यह भी संभव है कि कूकी के मरने के बाद उसका यह सम्बंध जमीन के नीचे दफन हो जाएगा और  अनिकेत  को उसके बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं होगी। बच्चों को भी यह पता नहीं चल पाएगा कि उसकी माँ की आत्मा किसी दूसरे देश में धड़कती थी।
              ऐसा भी हो सकता है कि उसकी दुनिया में अचानक एक विध्वंसकारी भूकंप आ जाए और एक ही झटके में उसकी बनी बनाई सारी दुनिया को तहस नहस कर दे। सारे सगे सम्बंधी उससे मुँह फेर लेंगे। पति उसको छोड़ देगा। उसके बच्चें उसको छोड़कर  दूर चले जाएँगे। असहाय होकर कूकी अकेली बैठी रहेगी। उसके पास कोई हमदर्दी जताने वाला भी नजर नहीं आएगा। उसने दुनिया की नजरों में बहुत बड़ा पाप किया है। उसके इस बड़े पाप  की  खातिर सारी दुनिया उसके मुँह पर थूकने लगेगी।
              पता नहीं, कूकी को सारा दिन बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग  रहा था। उस दिन वह कोई ई-मेल लिख नहीं पाई थी।अनिकेत जब  शाम के समय बच्चों के साथ पिज्जा कॉर्नर में गया हुआ था। उस समय कूकी के मन में आया कि वह एक ई-मेल लिख दे। गम हो या खुशी, कूकी किसी भी अवस्था में अपने आप पर काबू नहीं रख पाती थी। उसके कदम  अपने आप कम्प्यूटर की ओर  खिंचे  चले जाते थे।
              कूकी ने अपने ई-मेल में लिखा था, पता नहीं आज क्यों उसका मन भारी-भारी लग रहा था। उसे इस तरह की मायूसी लग रही थी मानो उसके सामने कोई दुर्घटना घट गई हो। शफीक , मेरा मनोबल तुम्हारी तरह मजबूत नहीं है कि मैं हर प्रकार की समस्याओं का सामना कर सकूँ। पता नहीं भगवान की क्या इच्छा है ? मुझे तुम्हारे साथ क्यों जोड़ दिया ? मेरा तुम्हारे बिना जिन्दा रहना अब सम्भव नहीं है, मगर मैं यह भी जानती हूँ तुम्हारे साथ जुडे रहना भी मेरे लिए खतरे से खाली नहीं है। अगर मैने इस ई-मेल में कुछ गलत लिख दिया हो तो उस पर ध्यान मत देना और मुझे क्षमा कर देना।
              कूकी ने उसके बाद  के पैराग्राफ में शफीक के प्रति अपना प्यार जताया था। पूरा मैटर टाइप करने के बाद जब उसने अपना ई-मेल आई.डी. खोला तो उसने देखा उसके मेल बाक्स में पहले से ही उसके नाम शफीक का एक ई-मेल आया हुआ था।  ऐसे  समय  पर शफीक का ई-मेल देखकर कूकी को अचरज होने लगा। अपना मेल न भेजकर पहले वह  शफीक  का ई-मेल पढ़ने लगी। शफीक ने अपने छोटे-से ई-मेल में   लिखा था, "आज मेरा मूड़ ठीक नहीं है। मैं अब और इस देश में रहना नहीं चाहता हूँ। सही बता रहा हूँ, रुखसाना, अगर मेरे कंधों पर तबस्सुम और लड़कियों का बोझ नहीं होता तो मैं कबसे तुमको लेकर हमेशा-हमेशा के लिए पेरिस चला गया होता।
              जानती हो, रुखसाना, आज यहाँ के लोगों ने मेरे घर के ऊपर पत्थर फैंके । कुछ कट्टर पंथियों ने मेरे घर के सामने विरोध प्रदर्शन किया। मैं काफी तनाव में हूँ। मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं है, इसलिए आज मैं ज्यादा नहीं लिख पा रहा हूँ। मैं आज तन्हा महसूस कर रहा हूँ मेरी एंजिल। बाद में विस्तार से लिखूँगा।"
              क्या इसे टेलीपेथी कहते हैं ? इधर कूकी का मन अस्थिर और विषाद ग्रस्त था, और उधर शफीक तकलीफों के साथ जूझ रहा था।
              शफीक का ई-मेल पाते ही कूकी के दिल की धड़कने बढ़ने लगी। शफीक     के साथ  ऐसा क्या हो गया ? उसके घर के सामने विरोध प्रदर्शन का क्या  कारण    हो सकता है  ? कहीं वह मौलवियों के हाथ पकड़ा तो नहीं गया ? आज के जमाने में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। शफीक अपने विवाहोत्तर सम्बंधों को लेकर जिस तरह लापरवाही बरत रहा था, कूकी को पहले से ही अंदेशा हो रहा था कि कभी न कभी वह किसी गंभीर समस्या का शिकार होगा। अपने सम्बंधों के बारे में तबस्सुम और बच्चों को बताने की क्या जरूरत थी ?
              कूकी मन ही मन बुरी तरह बेचैन हो रही थी। उसे लग रहा था जैसे  उसके पाँव काँप रहे हो । पहले से लिखे हुए ई-मेल को भेजना उसने उचित नहीं समझा। उसने केवल दो लाइन का एक मेसेज बनाया और शफीक को भेज दिया।
              "अगर सम्भव हो तो मुझे फोन करो। तुम्हारे साथ ऐसा क्या हुआ ?" मुझे, प्लीज, जल्दी बताओ। मैं बुरी तरह परेशान हूँ।"
              मगर शफीक का कोई फोन नहीं आया। घर में बच्चें पिज्जा-कॉर्नर से लौट आए थे। घर मे  आते ही हल्ला-गुल्ला करने लगे। बच्चें  पापकार्न खाते-खाते टीवी में कॉमेडी सीरियल  देखकर जोर-जोर से हँस रहे थे। मगर कूकी के चेहरे पर हँसी के कोई भाव नहीं थे । वह भी बच्चों के पास बैठकर कॉमेडी सीरियल  देख जरूर रही है, मगर उसका ध्यान सीरियल की तरफ कहाँ ? उसे लग रहा था कहीं उसे बुखार न हो  जाए। मन ही मन एक बात कौंध रही थी,कि  आखिर  शफीक ने फोन क्यों नहीं किया ? कहीं   उसके साथ  कोई दुर्घटना तो नहीं घट गई।
                कूकी के पीले पड़े हुए चेहरे की तरफ देखकर अनिकेत कहने लगा "क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है ?"
              कूकी ने झूठ बोला, "ऐसे ही हल्का-हल्का सिर दर्द हो रहा है।"
              "शॉवर के नीचे खड़ी होकर बहुत समय तक  नहाई होगी ?"
              "फिर पेट साफ नहीं हुआ होगा ?"
              " सिर हल्का-हल्का दर्द कर रहा है।"
              "गरमा गरम एक चाय बनाकर पी लो, सब ठीक हो जाएगा।"
              "पहले तुम अपनी पूजा खत्म कर लो फिर एक साथ बैठकर चाय पीएँगे।"
              अनिकेत की हर रोज  की आदत थी। जब भी वह आफिस से घर लौटता था तब नहाने धोने के बाद आधे घण्टे तक पूजापाठ करता था। पूजापाठ खत्म होने के बाद वह चाय पीता था। कूकी का उसकी तरह पूजापाठ में ध्यान नहीं लगता था। अनिकेत एक छोटी-सी डायरी में लिखकर रखता था, कि किस मंदिर में उसे इस महीने दरिद्र भोजन करवाना है ? किस मंदिर में बीस नारियल चढ़ाने हैं ? किस मंदिर में  ब्राह्मण -भोज खिलाना है ?   और माँगी हुई मुराद पूरी होने पर किस मंदिर में भागवत पाठ करवाएगा ?
              यद्यपि कूकी की दिनचर्या में भी पूजा शामिल थी, मगर वह भगवान के सामने अपने लिए कुछ माँग नहीं पाती थी। वास्तव में पूजा के समय उसका ध्यान कहीं और होता था। उसकी जिंदगी में दुखों की कोई कमी नहीं है। किन - किन दुखों के निवारण के लिए वह भगवान से प्रार्थना करती ? इसके अलावा, कई दुख ऐसे भी थे जो अनिकेत और उसके बीच कॉमन थे।
              पता नहीं, आज क्यों कूकी  की  मन ही मन इच्छा हो रही थी कि वह  शफीक के लिए  भगवान से   कुछ माँगे। वह भगवान से माँगेगी कि शफीक के साथ कुछ अमंगलकारी घटना न घटे।
              उस दिन शाम को लगभग चार फोन आए थे। पहले दो फोन अनिकेत के दफ्तर से थे, तीसरा फोन स्थानीय स्टेट बैंक  के मैनेजर की पत्नी का था और आखिरी फोन कूकी की छोटी बहिन का था। उड़ीसा से बाहर रहने वाले उड़िया लोगों में जिस तरह अपने आप एक घनिष्ठ सम्बंध स्थापित हो जाता है, कूकी का भी ठीक उसी तरह उड़िया लोगों से घनिष्ठ सम्बंध था।
              जितनी बार फोन में रिंग बजती थी उतनी बार कूकी की छाती एक अज्ञात भय से धड़कने लगती थी।           
              कूकी को चिंता हो रही थी, कहीं शफीक का फोन तो नहीं था। कूकी ने उसको फोन करने का कोई निर्दिष्ट समय नहीं बताया था। कूकी ने शफीक का ई-मेल मिलते ही उसको फोन करने के लिए कहा था। अगर शफीक ने शाम को उसका ई-मेल पढ़ लिया होगा तो ?
              जितनी बार फोन की घटी बजती थी, उतनी बार कूकी सहम जाती थी। डर के मारे वह फोन भी नहीं उठाती थी। बार-बार घंटी बजने के बाद भी उसको फोन नहीं उठाता देख बेटे को गुस्सा आ गया था। गुस्से में वह कहने लगा "मम्मी आप फोन के पास बैठी हो, , फिर भी फोन नहीं उठा रही हो। क्यों ? मै कितनी बार अपनी पढ़ाई छोड़कर फोन उठाने जाऊँगा ?"
             इधर  पूजापाठ में बैठा हुआ अनिकेत भी  चिल्लाने लगा, "कोई नहीं है क्या फोन के पास ? कोई तो जाकर फोन उठाओ। कब से घंटी बज रही है ?"
              कूकी मन ही मन सोच रही थी कि अगर शफीक का फोन आता है तो वह गलत नंबर कहकर फोन रख देगी, अन्यथा वह  जैसे ही उसकी आवाज सुनेगा ; फोन पर गपियाना शुरु कर देगा।
              कूकी रात भर शफीक के बारे में सोचते-सोचते ठीक ढंग से सो नहीं पाई। बीच-बीच में बार-बार उसकी नींद टूट जा रही थी। नींद टूटने पर वह कभी बाथरुम जाने लगती तो कभी पानी पीने लगती । सुबह जाकर कहीं थोड़ी-बहुत आँख लगी थी। आँख लगते ही उसने एक विचित्र-सा सपना देखा। जिसके कारण उसको  नींद से जागते ही  सिर भारी-भारी लगने लगा। चाय पीने के बाद भी सिर का भारीपन खत्म नहीं हुआ।
              कूकी को छोड़कर सभी लोग दस बजे तक अपने- अपने काम के लिए घर से बाहर निकल गए थे । खाली घर मे उसको शफीक की याद और  तड़पाने लगी। किस अवस्था में होगा बेचारा वह ? अभी तक उसका फोन क्यों नहीं आया ? कुछ अनहोनी घटना तो नहीं घटी उसके साथ ? कूकी अपने व्यग्र मन को स्थिर नहीं कर पा रही थी ।
              उसी समय शफीक  का फोन आया, जिसका वह काफी समय से इंतजार कर रही थी।
              "क्या हुआ, शफीक ? तुम्हारे घर के सामने विरोध-प्रदर्शन क्यों हो रहा था ?" कूकी के मन की सारी भावनाएँ एक साथ फूट पड़ी थी  मानो बाँध ने टूटकर धाराओं का रुप ले लिया हो।
              "रुखसाना, तुम इतनी डरी हुई क्यों लग रही हो ? मैं एकदम ठीक हूँ।      मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है ।"
              "शफीक, सही- सही बताओ, तुम्हारे साथ वास्तव में क्या हुआ है ?"
              "रुखसाना, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है । मैं तो केवल इतना ही कह रहा था कि मैं किसी भी देश से बँधा हुआ नहीं हूँ। कोई भी  आर्टिस्ट किसी एक देश का नहीं होता है, बल्कि सारी दुनिया ही उसका घर होती  है।"
              "यह बात किसको कह रहे थे ?"
              "प्रेस को।"
              "प्रेस मतलब प्रेस कांफ्रेंस में ? प्रेस-कांफ्रेंस क्यों  बुलाई   थी  ?"
              शफीक ने कहा, "तुम तो जानती ही हो मैं किसी भी धर्म में  विश्वास नहीं रखता। मेरे लिए हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी समान है। मैं केवल एक परम सत्ता में  विश्वास रखता हूँ। मैं तुम पर विश्वास करता हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। तुम ही मेरी प्रेरणा-स्रोत  हो। तुम मेरे लिए सब-कुछ हो। तुम तो मेरे लिए गोडेस हो। मैने कई बार अपने सपनों में तुम्हे  न्यूड़ देखा है। रुखसाना, मेरे देश पाकिस्तान में मेरी पेंटिंग 'गोडेस' काफी विवादों के घेरे में रही। तुम तो जानती हो, इस्लाम धर्म में देवी-देवताओं का कोई स्थान नहीं है। दियर इज आनली वन  गाड ! सो, दे काल्ड मी ए "काफिर"। उन्होंने मुझ पर दोषारोपण किया है  कि मैं एक विधर्मी आदमी हूँ। मैने अपनी पेंटिंग में हिंदुत्व को प्रोत्साहित किया है।मैंने  इसी विवाद को विराम देने के लिए प्रेस  कांफ्रेंस बुलाई थी और    उसमें  अपना वक्तव्य दिया था, "मेरा अपना कोई देश नहीं है। और वैसे  भी कोई भी आर्टिस्ट किसी एक देश से बंधकर नहीं रहता। सारा जहान उसका अपना घर होता है।"
               मेरी इस बात को मीडिया वालों ने तोड़-मरोड़कर आवाम के सामने पेश कर दिया। बस और , होना ही  क्या था ? यहाँ के कट्टरपंथियों ने बेवजह इस बात को तूल दे दिया।
              "तुम हमेशा पागलों जैसी हरकतें क्यों करते हो ?" कूकी ने पूछा।
              "पेंटिंग मेरा पागलपन है। अब बताओ, क्या तुम मेरी गोडेस नहीं हो ? क्या किसी आर्टिस्ट को  इतना अधिकार नहीं है कि वह अपने मन के भावों को कैनवास पर उतार सके ?"
              "शफीक, मुझे बहुत डर लग रहा है। कहीं वे लोग तुम्हें किसी तरह का नुकसान तो नहीं पहुँचा देंगे ?"
              "धत् तुम  बेकार में डर रही हो। वे लोग मेरा क्या कर लेंगे ? छोड़ो उन बातों को। माइ गोडेस, कम टू माई  आर्म्स ; आइ वांट टू फील यू।"
              कूकी ऐसे दीवाने आर्टिस्ट के साथ क्या करेगी ? वह तो  अपनी साधना के उस स्तर तक पहुँच गया है जहाँ पर मोक्ष और सांसारिक सुख दोनों एक साथ मिलते हैं।
              कूकी कभी उसके सामने भोग्या थी, कभी उसकी प्रेमिका, तो कभी वह  उसकी  साधना की सिद्धिदात्री देवी।  कूकी को याद आया, कभी उसने कुंडलिनी के विषय में कुछ श्लोक पढ़े थे
              "यत्रास्ति मोक्ष न च तत्र भोग
              यत्रास्ति भोग न च तत्र मोक्ष
              श्री सुंदरी सेवन तत्पराणां भोगश्च मोक्षश्च करस्थानै व।"

              कूकी जानती थी,कि  अगर वह  ये श्लोक शफीक को  लिखकर  ई-मेल कर देती है, तो शफीक  उससे यह  अवश्य  पूछने लगेगा, कुण्डलिनी क्या होती है।"
              तब कौन उसको कुण्डलिनी और उसके जागरण के सारे तत्वों के बारे में    समझाने बैठेगा ? उसने  जिस भावना से उसे  स्वीकार किया है, वही ठीक है। वह जहाँ भी रहे  खुशी से रहे। सदैव चेहरे पर मुस्कान बनी रहे। मगर कब तक  यह सब      चलता रहेगा ? इस संबंध का कभी न कभी तो  अंत होगा ? क्या होगा वह अंत ? आखिर में अंत तो होना ही था। शफीक को क्या पता, उसे जिंदगी किस तरफ ले जा रही है ? उन दोनों की जिंदगी में क्या मोड़ आने वाला है ? आगे स्वर्ग मिलेगा या नरक ? मगर चलना तो पड़ेगा ही।






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