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Showing posts from February, 2019

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23               मगर कुछ दिन पहले तो वह केवल प्रेम के आधार पर ही अपनी जिंदगी गुजार रही थी। अभी भी प्रेम है मगर नगण्य।उसको शफीक का फोन आने के बाद  ऐसा ही लग रहा था।वह जब  सवेरे-सवेरे  नहाने जा रही थी तभी शफीक का फोन आया था। उस समय बच्चे स्कूल चले गए थे। कूकी ने यह सोचकर कि अनिकेत  उड़ीसा अपने गाँव पहुँच गया होगा,    दौड़कर फोन उठाया। मगर वह फोन अनिकेत का नहीं था। उस तरफ से शफीक की आवाज आ रही थी।कूकी को  शफीक की आवाज सुनकर आश्चर्य होने लगा । अगले ही पल में उसका आश्चर्य खुशी में तब्दील हो गया।उसकी आँखें  एक लंबे अर्से के बाद रुखसाना संबोधन  सुनकर    भर आई थी।  शफीक  की  आवाज सुने  शायद तीन-चार महीने बीत चुके थे । आवाज में अभी भी वही सम्मोहन शक्ति थी । शांत  स्वर में वह कहने लगा था, "रुखसाना, कैसी हो बेबी ?"               "शफीक, माई गॉड। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।" कूकी का गला भर आया था। उसका पूरा शरीर एर अद्भुत सी उत्तेजना में काँप रहा था।               "बेबी, तुमने मेल चेक किया ? मेरा ई-मेल मिला ?"               "तुमने ई-मेल किया था ? मुझे तो अभी

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22 और कितने दिन ? कितने दिन सहन करना पड़ेगा इस आतंकवाद को ? उसे पता नहीं।ऐसे ही हर दिन कुछ न कुछ निर्दोष लोग मरते होंगे। लेकिन वे लोग जिनके मरने से दुनिया में कुछ सुधार आता, वे लोग मीडिया के कैमरे में बंद होकर भाषण देते नजर आते हैं। उस दिन की घटना ने सबको हिलाकर रख दिया था। टी.वी चालू करते ही वह दिल दहला देने वाला दृश्य दुकानों और मकानों के भग्नावशेष, जले हुए साइन बोर्ड, आदमियों की लाशों  के ढेर, बिखरे हुए उनके शरीर के अंग, किसी के हाथ किसी के पैर, दर्द से कराहते हुए आदमी और असहाय होकर शून्य की तरफ देखता हुआ निर्वाक शिशु।               चारों तरफ बारुद की गंध मानो इंसान के मन को विषाक्त कर दे रही हो। कभी आकाश से बम गिर रहा था तो कभी इंसान की नकली हँसी से बम गिर रहा था। उस लड़की की क्या गलती थी जो आसाम से भ्रमण पर दिल्ली आई हुई थी और अपने परिजनों के लिए कुछ सामान के वास्ते बाजार गई हुई थी ? उस लड़के की क्या गलती थी जो सुदूर बिहार से यहाँ होटल में काम करने आया था ? क्या जवाब देगा आतंकवाद उस छोटी-सी बच्ची को ?  जिसको उसके माँ-बाप  टी.वी. देखता छोड़कर आए थे यह कहते हुए कि एक घंटे के भीतर

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21               उसे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा।उसके लिए  अनिकेत के बिना अकेले रहना  बहुत दुखदायी था ? अन्यथा, उसके भीतर इतनी अस्थिरता क्यों रहती ? जब वह एक सप्ताह तो क्या एक दिन के लिए भी  घर से बाहर रहता था तो कूकी को घर में खाना बनाने की इच्छा नहीं होती थी। इधर-उधर करके थोड़ा बहुत खाना बना लेती थी। बच्चें भी आक्षेप लगाने लगते थे कि घर में पापा नहीं है इसलिए मम्मी उनका पूरा ध्यान नहीं रखती है। यहाँ तक कि कूकी अपना श्रृंगार भी अनिकेत को खुश रखने के लिए करती थी। उसने कभी अपने पिताजी को गर्व के साथ कहते हुए  सुना  था, देखो, मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मेरा दामाद एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में काम करता  हैं।कूकी भी  अपने पिताजी को खुश देखकर  फूली नहीं समाती थी।               भले ही, इस घर की चारदीवारी में दोनों के बीच में अच्छा तालमेल नहीं हो पा रहा था। कूकी को दिल खोलकर बात करने का अवसर नहीं मिल पा रहा था। उसे फिर भी  लगता था कि  अनिकेत की वजह से घर में सब-कुछ ठीक ठाक चल रहा है। जब वह एक साल के लिए ह घर से बाहर चला जाएगा तो क्या वह घर की देखभाल करने में समर्थ होगी ? वह अपने आपको ए

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20                " आइ एम नॉट इन सेफ पोजीशन।" शफीक ने अपने ई-मेल में लिखा था। कूकी ने सोचा भी नहीं था कि इतने दिनों के बाद शफीक का कोई ई-मेल भी आएगा। शफीक का इससे पहले वाला ई-मेल आए हुए दो महीने बीत चुके थे। और कूकी ने भी हर दिन इंटरनेट लगाना बंद कर दिया था। वह तो यह भी भूल  चुकी थी कि इस घर के बाहर  इस  धरती के किसी कोने पर उसकी एक अलग दुनिया भी थी।उसे  बीच-बीच में  शफीक की याद सताने लगती थी, मगर अब पहले जैसी वेदना नहीं होती थी। कुवैत जाने के दिन नजदीक आते जा रहे थे। वह अपने घर-संसार में बहुत व्यस्त रहने लगी थी। बड़े बेटे की हताशा को दूर करने के लिए तथा छोटे बेटे की मुस्कराहट को  बरकरार रखने के लिए उसने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया था।               पता नहीं कैसे एक दिन वह अपने आप पर काबू नहीं रख सकी और कम्प्यूटर में सीडी लगाते समय इंटरनेट को लाग ऑन कर दिया। कभी यह वही घर था जिसमें वह रोजाना आती जाती थी। अचानक कई दिनों के बाद अपने नाम का ई-मेल देखकर उसे अचरज होने लगा था। उसमें सेन्डर का नाम तक देखने का धैर्य नहीं था  । हो सकता है किसी ने वायरस भेजा हो या यह भी हो सकता है चे

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19      "मगर और क्या किया जा सकता है ?" अनिकेत ने कहा था। "मेरे हाथ में कुछ होता तब न, मैं कुछ कर सकता। हेडक्वार्टर से आर्डर आया हुआ है। अगर मैं नहीं जाऊँगा तो कोई दूसरा चला जाएगा, मगर उसके बाद कंपनी   कभी भी मुझे   विदेश यात्रा के लिए नहीं भेजेगी।  सब लोग तो विदेश यात्रा के लिए मुँह फाडकर बैठे हैं। अगर यह मौका  मैने जानबूझकर  हाथ से जाने दिया तो लोग मेरी खिल्ली उडाएँगे।"               कूकी और अनिकेत दोनो कुछ समय तक गंभीर मुद्रा में बैठे रहे। फिर कूकी कहने लगी, "विदेश यात्रा की बात तो अच्छी है। मगर कंपनी अमेरिका या कनाडा भेजती या फिर कम से कम मलेशिया या थाइलैण्ड भेजती तो बात कुछ और होती। मगर कुवैत का नाम सुनने मात्र से ही  मन में एक अजीब-सा भय पैदा होता है।"               "भय किस चीज का ? क्या कुवैत में लोग नहीं रहते हैं ?"               "भय तो लगेगा ही। भय वाली जगह है वह।" कूकी ने कहा, "कुवैत में अभी-अभी दो भारतीय ड्राइवरों को    अगवा कर लिया गया था।"              अनिकेत  गुस्से से कहने लगा, "तुम मुझे क्या ड्राइव

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18              उसके हाथ अपने आप अनिकेत की तरफ बढ़ते जा रहे थे उसको छूने और गले लगाने के लिए। यद्यपि उसे   अनिकेत को सुबह-सुबह  घर की दहलीज पर सिर से पाँव तक एक फोटो की तरह       खड़े  देखकर विश्वास नहीं हो रहा था । उसको देखते ही कूकी की अलसाई आँखों से नींद उड़ गई और उसके  होंठ  थरथराने लगे। कूकी ने अनिकेत को   हाथ आगे बढ़ाकर  अपनी छाती से लगा  लिया मानो उसके बिना कूकी का कोई अस्तित्व नहीं था। अनिकेत, तुम्हारे बिना हम  नहीं जी  सकते।               "अंदर चलो, अन्दर चलो। बाहर  खड़ी होकर यह क्या नाटक कर रही हो।" कहते-कहते अनिकेत कूकी को एक तरफ करते  हुए घर के अंदर चला गया। उसके हिसाब से मानो बीते  अड़तालीस  घंटो में कुछ भी नहीं हुआ था मानो बाकी   दिनों  की तरह वह आज भी ऑफिस से घर लौटा हो। अनिकेत की आवाज सुनते ही बच्चें बिस्तर छोड़कर फटाफट उसके पास आ गए और पूछने लगे, "पापा अभी तक आप कहाँ थे ? आप तो जानते ही हो मूसलाधार बारिश और बाढ़ ने मुम्बई में चारों तरफ तबाही मचाई है। लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आए हैं। हम लोग तो बुरी तरह से डर गए थे कि  कहीं आप भी बाढ़ की चपेट में नहीं

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17                अनिकेत कहाँ हो  तुम ? वह आस-पास तो  कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। तो फिर  इतनी  जोर-जोर से दरवाजा कौन खटखटा रहा था ? ऐसा लग रहा है जमकर बारिश हुई है। अभी भी ठंडी-ठंडी हवा  बह रही है। रात के कितने बजे होंगे ?कूकी  दरवाजे पर चिटकनी लगाकर  अपने कमरे के अंदर लौट आई थी। कोई जोर-जोर से 'कूकी' 'कूकी' कहकर चिल्ला रहा था. कौन होगा वह ? अनिकेत ? उसका चेहरा साफ नहीं लग रहा था।               क्या कूकी कोई सपना देख रही थी ?उसकी नींद  किसी के जोर-जोर से आवाज देने से  खुल गई थी।वह  उठते ही  दरवाजा खोलने के लिए जल्दी से  बाहर निकली। मगर अंधेरा होने की वजह से उसे दरवाजा नहीं मिल रहा था।  वह अलमारी के दरवाजे को बाहर का दरवाजा समझकर बार- बार टकरा रही थी । अंतः में उसने दीवार पर हाथ रखा और धीरे-धीरेकर आगे बढ़ती गई तो दरवाजा मिल गया। मगर अलमारी के दरवाजे से टकरा जाने के कारण उसके सिर में चोट आ गई थी और सूजन आने की वजह से सिर में दर्द होने लगा था। उसके बावजूद भी वह अंधेरे में तेजी से भागते हुए दरवाजे के पास पहुँच गई।               शायद अनिकेत आ गया है। वह दरवाजे पर दस्तक द

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16               "व्हेअर आइ विल बी विद यू एंड यू विल बी विद मी।" इस दुनिया में हम दोनों के सिवा  कोई भी नहीं होगा। थ्रू सेक्स वि कुड रीच नेचुरल टू सुपनेचुरल। यही ओशो की  थ्योरी  थी न  रुखसाना ?" शफीक ने अपने ई-मेल में पूछा था "रुखसाना, तुम ओशो के विषय में कुछ जानती हो ? मैं उनके विषय में जानने का इच्छुक हूँ। मैने सुना है ओशो को हिन्दुस्तान में भगवान की तरह पूजा जाता है।"               आजतक उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की थी मगर ओशो और तंत्र के विषय में किसी ने कभी भी कोई बात नहीं  छेड़ी थी  । अचानक शफीक के दिमाग में यह प्रश्न क्यों उठा ? क्या शफीक ने ओशो के बारे में कहीं से कुछ पढ़ लिया है ? शायद इसलिए वह ओशो के बारे में जानने के लिए अपनी जिज्ञासा प्रकट कर रहा है। कूकी ओशो की कुछ किताबें पहले से ही पढ चुकी थी। मगर उसका  किताब पढ़ने के पीछे  किसी तरह  का कोई विशेष उद्देश्य नहीं था। उन किताबों को पढने के बाद   उसने  उन पर  कभी चिंतन मनन भी नहीं किया। उसे समझ में नहीं आ रहा था, शफीक को इस बारे में क्या लिखें ?               कूकी ने बहुत सोच-समझकर  अपने ई-मेल म