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              "व्हेअर आइ विल बी विद यू एंड यू विल बी विद मी।" इस दुनिया में हम दोनों के सिवा  कोई भी नहीं होगा। थ्रू सेक्स वि कुड रीच नेचुरल टू सुपनेचुरल। यही ओशो की  थ्योरी  थी न  रुखसाना ?" शफीक ने अपने ई-मेल में पूछा था "रुखसाना, तुम ओशो के विषय में कुछ जानती हो ? मैं उनके विषय में जानने का इच्छुक हूँ। मैने सुना है ओशो को हिन्दुस्तान में भगवान की तरह पूजा जाता है।"
              आजतक उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की थी मगर ओशो और तंत्र के विषय में किसी ने कभी भी कोई बात नहीं  छेड़ी थी  । अचानक शफीक के दिमाग में यह प्रश्न क्यों उठा ? क्या शफीक ने ओशो के बारे में कहीं से कुछ पढ़ लिया है ? शायद इसलिए वह ओशो के बारे में जानने के लिए अपनी जिज्ञासा प्रकट कर रहा है। कूकी ओशो की कुछ किताबें पहले से ही पढ चुकी थी। मगर उसका  किताब पढ़ने के पीछे  किसी तरह  का कोई विशेष उद्देश्य नहीं था। उन किताबों को पढने के बाद   उसने  उन पर  कभी चिंतन मनन भी नहीं किया। उसे समझ में नहीं आ रहा था, शफीक को इस बारे में क्या लिखें ?
              कूकी ने बहुत सोच-समझकर  अपने ई-मेल में लिखा, "मैने ओशो की कुछ किताबें जरुर पढ़ी है। वे किताबें पढते समय तो तर्क संगत अवश्य लगती है. मगर  पढने के कुछ समय बाद वे किताबें अपने आप दिमाग से निकल जाती है. हमारे प्राचीन हिन्दु-शास्त्रों में 'कुमारी साधना' का उल्लेख आता है।  ऐसे प्राचीन ग्रंथों में साधना के कई मार्ग दिखाए गए हैं।   शफीक,  जानते हो,  हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे शरीर के भीतर छह चक्रों की खोज की थी। वे छह चक्र क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर , अनाहत, विशुद्धि  तथा आज्ञा चक्र हैं। मूलाधार चक्र में एक सर्पिणी ढाई कुंडल मारकर बैठी रहती है, जिसे कुंडलिनी कहते हैं। हमारे मेरुदण्ड में तीन मुख्य नाडियाँ होती हैं, इडा, पिंगला और सुषुम्ना। जैसे-जैसे योगाभ्यास द्वारा जब कुंडलिनी जागृत होकर इन छह चक्रों का भेदन करती हुई आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे साधक को तरह-तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती जाती है। अंत में कुंडलिनी आज्ञा चक्र को भेदते हुए सहस्रार  बिंदु पर पहुँच जाती है तो वहाँ साधक को आलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है. यही पहुँचकर साधक मोक्ष पद को प्राप्त करता है। इसी पुराने आध्यात्मिक ज्ञान को ओशो ने जरा सा बदलकर एक नई पद्धति को इजाद किया। वह है 'संभोग से समाधि की ओर', 'सेक्स टू सुपर कांशियसनेस', 'काम से राम की ओर'।
              मगर शफीक,  इन सारी बातों को जानकर तुम्हें क्या फायदा होगा ? तुम्हें तो कोई महापुरुष नहीं बनना है ? तुम एक  धर्मगुरु  भी नहीं बनना चाहते हो। हमें  हमारा प्रेम ही  शारीरिक प्रेम की ओर आकर्षित कर रहा है। हम केवल प्रेम में जिएँगे   और केवल शारीरिक सुख भोगेंगे। ओशो  का कथन है कि जो व्यक्ति बिना वीर्य क्षरण के अपने सारे चक्रों का भेदन करता है, वह तुरीयावस्था को प्राप्त कर लेता है। वह दुनिया के सुख दुखों से ऊपर उठ जाता है। उसे किसी भी तरह की सांसारिक चिन्ता नहीं सताती है। आखिरकर वह आदमी अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
              तुम्हें यह बात किसने कही कि भारत में ओशो को भगवान का दर्जा दिया गया है। यह व्यक्तिगत श्रद्धा और आस्था का सवाल है। यह कोई जरुरी नहीं है, जो अनुयायी ओशो को भगवान मानता है तो दूसरा आदमी भी ओशो को भगवान मानेगा। हिन्दुस्तान में ऐसे  बाबाओं  और माताओं की कोई कमी नहीं है, जिन्हें लोग अभी भी भगवान का अवतार मानते हैं। फिर अगर तुम ओशो के बारे में कुछ और ज्यादा  जानना चाहते हो तो मैं तुम्हारे लिए कुछ और किताबें पढूँगी तथा उसके बारे में विस्तार से लिखकर तुम्हें ई-मेल कर दूँगी । अगले दिन शफीक का ई-मेल आया था, " तुम्हारा  ई-मेल मुझे एक अनोखी दुनिया में ले गया है।जब  कभी  भी हमारी मुलाकात होगी तो क्या हम सेक्स-थ्योरी  को अपने ऊपर इस्तेमाल करेंगे ? मगर तुमने तंत्र के विषय पर तो कुछ भी नहीं लिखा। क्या यह विषय तुम्हारे दिमाग से उतर गया ?"
              रुखसाना, मेरे पेरिस जाने के दिन जितने नजदीक आ रहे हैं, मैं उतना ही खुश होता जा रहा हूँ। अभी से ही मैने अपने भविष्य के बारे में सपने  देखने शुरु कर  दिए  है। बेबी, उस वक्त तुम पेरिस आने के लिए इंकार तो नहीं कर दोगी ?"
              अंतिम पैराग्राफ में वही घिसी-पिटी प्रेम की बातें, जिसे कूकी लंबे अर्से से पढ़ती आ रही थी। " आइ एम सोकिंग योर लिप्स। गिव मी योर सैलिवा, आइ वांट टू  ड्रिंक । इन्जर्ट योर टंग इन्टू माई माऊथ।"
              शफीक का यह ई-मेल पढकर  कूकी  को कुछ अच्छा नहीं लगा। वह सेक्स को लेकर  इतने एक्सपेरीमेंट      क्यों   करना  चाहता है ? शफीक के लिए केवल सेक्स ही  सब कुछ है। क्या प्रेम उसके लिए कोई मायने नहीं रखता ? तो फिर उसकी बातें "यू आर माई एवरीथींग, विदाउट  यू आइ हेव नो अक्सीजटेंस" सब बनी बनाई थी ?
              सेक्स पर प्रयोग करने की बातों को लेकर कूकी को गुस्सा आ रहा था। गुस्से-गुस्से में कूकी ने  शफीक   को एक जवाबी ई-मेल लिखा था, "मैं ओशो के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने में  तुम्हारा बिल्कुल भी सहयोग नहीं कर सकती। मैं तो एक सामान्य औरत हूँ। मेरी इच्छाएँ भी साधारण ही हैं। मैं आपसे प्रेम की उम्मीद करती हूँ। जिस प्रेम की खातिर मैं जी सकूँ। साधना-मार्ग से मेरा कोई वास्ता नहीं है। तुम सेक्स पर अपने प्रयोग जारी रख सकते हो। किसी दूसरी औरत को अपने इस  प्रयोग में इस्तेमाल कर सकते हो। मैं  इस कार्य के लिए तुम्हें  कभी भी नहीं रोकूँगी। मैं तो केवल जीना चाहती हूँ। मैं इस जीवन का भरपूर उपभोग करना चाहती हूँ। मुझे मोक्ष प्राप्ति की तनिक इच्छा नहीं है. जबकि मैं तो चाहती हूँ कि मैं नैरात्मा बनकर तुम्हारे आने का इंतजार करुँ। मैं तो यही चाहती हूँ कि तुम व्याकुल होकर मेरी तरफ  दौड़े चले आओ। बस इतनी छोटी-सी ख्वाहिश है मेरी. तंत्र के बारे में तुम कुछ जानना चाहते थे ? हमारे देश में कई जगह तंत्र को मान्यता दी गई है तो कई जगह पर खारिज भी कर  दी  गई   है । कहीं तंत्र को साधना का  सर्वोपरि  साधन मानकर स्वीकार किया गया है, तो कहीं इसे 'काला जादू' कहकर तिरस्कारित किया गया है। कभी-कभी यह भी सुना जाता है कि तंत्र के माध्यम से बड़े से बड़े असाध्य काम भी आसानी से हल हो जाते हैं। तो कभी-कभी यह भी सुना जाता है कि तांत्रिक लोग तंत्र को काले जादू के रुप में प्रयोग करते हैं। इसलिए तंत्र को आम लोग नफरत की दृष्टि से देखते हैं। ऐसा भी सुना गया है कि तंत्र के किसी मंत्र के उच्चारण में अगर भूल हो जाती है, तो साधक का बुरी तरह से अनिष्ट हो जाता है।
              कभी-कभी  तो नतीजा इतना भयानक होता है कि तांत्रिक का सर्वनाश हो जाता है। अच्छा, न तंत्र-मंत्र की बातें छोड़ो । मुझे यह बताओ कि अचानक तुम अपना रास्ता बदलकर किस दिशा में आगे बढ रहे हो ? हम तो प्रेम की राह के राहगीर थे। उसी राह पर वापिस आ जाओ। सिद्धी प्राप्त होने से अथवा साधना फलीभूत हो जाने से हमे क्या मिलेगा ? मान लेते हैं, अगर हमे मोक्ष भी मिल जाए तो क्या फायदा ?"
             कूकी  ने इस ई-मेल को भेजने के बाद  सोचा कि शफीक जैसे आर्टिस्ट को सँभालना उसके बस की बात नहीं है। कब उसका मूड़ बदल जाएगा ? उसके मूड़ का कोई ठिकाना नहीं है। शाम को जब अनिकेत घर लौटता था। घर का सारा वातावरण बदल जाता था। अनिकेत ने छोटे बेटे को पढ़ाते समय  अपने नाखूनों से चिकुटी काटते हुए  उसका कान  इतनी  जोर से मरोड़ दिया  था कि उसके कान से खून बहने लगा था। कूकी यह देखकर अनिकेत पर कम से कम आधे घण्टे तक झल्लाती रही। उसके बाद उसने छोटे बेटे के कान पर मल्हम लगाया था।कूकी  उस दिन  अनिकेत से  झगड़ा  कर भूखी सो गई थी। उसके घर में इस तरह के नाटक तो हर दिन चलते थे। एडॉप्ट अनलेस  एडजस्ट . उसको तो केवल एडजस्ट करके  चलना  पड़ रहा था क्योंकि आत्महत्या करना उसके वश की बात नहीं थी। मायके वह जा नहीं सकती थी और तलाक लेने की बात तो वह अपने सपने में भी नहीं सोच सकती थी। जैसे-तैसे करके उसे अपना जीवन गुजारना था।
              पिछली रात की सारी बातों को उसने सुबह होते ही  भुला  दिया था। कूकी ने सबके लिए  खाना बना लिया था।उसने  नैकरानी के घर से जाने के बाद  अपने दूसरे दरवाजे के फाटक खोल दिए थे। वहाँ  शफीक का ई-मेल उसका इंतजार कर रहा था। "यू हिन्दू पीपल आर वेरी आर्थोडाक्स एंड सुपरस्टीसियस    इन स्प्रिच्चूलिज्म। ओशो की सेक्स साधना में मेरी मदद करने से तुमने  इनकार  क्यों कर दिया ? क्या तुम मुझसे नाराज हो ? ऐसा क्या हो गया जो तुमने  इस कार्य हेतु मुझे  एक अलग पार्टनर खोजने की सलाह दी ? क्या तुम मुझे अपना पार्टनर नहीं मानती ? व्हाई आर यू सो आर्थोडाक्स बेबी ?
              शफीक की यह बात कूकी को बुरी तरह से लग गई। 'यू हिन्दू पीपल ?' क्या कहना चाहता है शफीक ? तो क्या उनका सम्बंध भी हिन्दू-मुस्लिम के मजहबी दायरे में चला गया। शफीक ने उसको आर्थोडाक्स हिन्दू कहकर न केवल उसको बल्कि समस्त हिंदू समाज को गाली दी है।  कूकी को अन्धविश्वासी और रुढिवादी कहने का अधिकार    उसको किसने दिया था ? इसका मतलब कहीं यह तो नहीं  शफीक के दिल में उसके प्रति प्रेम की भावना कम होती जा रही है। नहीं तो, इन सब अनर्गल बातों से उसका क्या अभिप्राय है ?
              संस्कृति, परम्परा और धर्म प्रत्येक व्यक्ति  को एक अलग परिचय दिलाता है। यही कारण है कि वक्त-वक्त पर धर्म उसके जीवन राह पर दस्तक देता है। कूकी भगवान के अस्तित्व के बारे में  कभी भी अपना दिमाग नहीं लगाती है। अध्यात्म, मोक्ष या निर्वाण के बारे में उसका ध्यान कभी भी नहीं जाता। वह तो केवल इतना ही चाहती है कि उसका जीवन सुखमय हो और जीवन के हर क्षण को वह अच्छी तरह से उपभोग कर सके। उसके लिए तंत्र-मंत्र, योग-साधना आदि की बातें कोई मायने नहीं रखती। फिर भी शफीक के तीन शब्दों 'यू हिंदू पीपल' ने उसे अंदर से बुरी तरह से तोड़ दिया। क्यों ? अभी तक कहाँ रह गया था उसके हिंदुत्व का परिचय ? पता नहीं क्यों, वह अपने इस परिचय को ना तो स्वीकार कर पाई और ना ही अस्वीकार। अब उसको मन ही मन 'सेक्यूलर' शब्द का स्वरुप अपनी आँखों के सामने साफ झलकने लगा था।
              कूकी अपने आपको बिल्कुल भी सँभाल नहीं पाई। तुरंत ही उसने शफीक के नाम का एक ई-मेल लिखा. तथा उसके ई-मेल से 'यू हिंदू पीपल' वाले वाक्य को कॉपी करके अपने ई-मेल में पेस्ट कर दिया। उसके आगे उसने लिखा "शफीक, तुम्हारी बातों से मैं बुरी तरह टूट गई हूँ। मुझे बहुत दुख हुआ कि तुम्हारे मन में भी इस तरह की संकीर्ण भावना भरी हुई है। मुझे आज तक इस बात का पता नहीं था। मुझे पहले से ही यह बात  समझ में क्यों नहीं आ गई ? अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ तो मुझे आराम से छोड़ सकते हो। यही सोच लो हम एक दूसरे के लिए बने ही नहीं। अपनी इस हिन्दू प्रेमिका का परित्याग कर दो। मैं इतना भी जानती हूँ तुम  इतनी  जल्दी  मुझे नहीं   भुला पाओगे। मैं खुद भी  इतनी आसानी से   तुम्हें नहीं भूल पाऊँगी। क्या तुम मुझे भूल सकोगे ? बस, कलम को यही विराम देती हूँ। तुम्हारी रुखसाना।"
              इससे पहले जब कभी भी  शफीक के ई-मेल से कूकी को कुछ गलत फहमी होती थी तो अपना प्रत्युत्तर ई-मेल भेजने के बाद उसे कुछ राहत मह्सूस होने लगती थी। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।उसने  उस दिन  खुद को घर के काम काजों में व्यस्त रखना चाहा। लेकिन उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। उसने अपना मन लगाने के लिए  एक पत्रिका का सहारा लिया, तब भी उसका मन  स्थिर नहीं हुआ।  उसका मन शायद शफीक के फोन का इंतजार कर रहा था। उसे लग रहा था शायद फोन की घंटी अभी बज उठेगी और शफीक उससे कहने लगेगा, "बेबी, इतनी जल्दी तुम गुस्सा क्यों हो जाती हो ? सॉरी, मेरा  तुम्हे कष्ट पहुँचाने का कोई इरादा नहीं था।"
              मगर शफीक का कोई फोन नहीं आया। कूकी बुरी तरह से बेचैन  हो  रही थी।उसने एक बार  इंटरनेट लगाकर अपना मेल बॉक्स चेक भी किया था, मगर उस मेल बॉक्स में उसके नाम  शफीक का कोई ई-मेल नहीं था। वह सोचने लगी शायद शफीक ने  अपना मेल बॉक्स अभी देखा नहीं होगा।वह  शाम को जब  अपना मेल बॉक्स चेक  करेगा तो कूकी का ई-मेल उसे मिल जाएगा.कूकी  तरह-तरह की बातों से  अपने मन को सांत्वना दे रही थी,  तब  भी उसके मन से शफीक की बात 'यू हिंदू पीपल' हटने का नाम नहीं ले रही थी। कितने अच्छे लोग हुआ करते थे वे ? उनका देश, धर्म, जाति से कोई लेना-देना नहीं था ।  मगर  इस बार अचानक कहाँ से उसके मन में आ गई 'यू हिंदू पीपल' वाली बात।
                    दूसरे दिन घर से अनिकेत और बच्चों के अपने काम पर जाने के बाद बड़ी आशाओं के  साथ कूकी ने अपनी दूसरी दुनिया का दरवाजा खोला। मगर तब भी दूसरी दुनिया में उसके नाम कोई संदेश नहीं था। उसका मन कर रहा था वह  शफीक का नाम लेकर जोर-जोर से चिल्लाए।
              कूकी डर रही थी कि कहीं शफीक नाराज तो नहीं हो गया। नाराज हो जाने पर भी वह अपने हाथ  इतनी  जल्दी पीछे नहीं खींचता। शायद वह कहीं बाहर गया हुआ होगा इसलिए उत्तर नहीं दे पाया होगा। अगर वह बाहर जाता तो एक बार तो जरुर बताता। एक बार उसे अचानक क्वेटा जाना पडा था। वहाँ जाते ही उसने कूकी को फोन किया था। कूकी का मन तरह-तरह की आशंकाओं  से  व्याकुल होने लगा था। इस बार शफीक के फोन नहीं करने का क्या कारण हो सकता है ?
              आज तक जितनी भी बार उन लोगों में मन मुटाव हुआ था, उन सभी मन मुटावों से वे ऊभर कर बाहर निकल जाते  थे  । इस वजह से उनके सम्बंधों में कभी  भी दरार नहीं पड़ी थी। कहीं ऐसा तो नहीं गुस्से में आकर कूकी ने अपने ई-मेल को किसी दूसरे के नाम पर भेज दिया हो ? मन ही मन वह विचार कर रही थी इतने दिनों से ई-मेल लिखने के अभ्यस्त हाथ क्या गलत टाइप कर सकते हैं ? इसके बावजूद भी कूकी बैठकर शफीक के फोन का इंतजार कर रही थी, मगर  शफीक का कोई फोन नहीं आया। शफीक के फोन का इंतजार करते-करते  कूकी  का धीरज टूटने लगा था।  उसने फिर से एक ई-मेल लिखा, शफीक , क्या तुम्हें  मेरा ई-मेल नहीं मिला ? तुमने अभी तक जवाब क्यों नहीं दिया ? क्या सही में तुम मुझ से नाराज हो गए हो ? मगर क्यों ?  इस बार तो गुस्सा करने की मेरी बारी थी। मैने ऐसी कौनसी बात कह दी जो तुम्हारे सीने में चुभ गई ? जिस बात को लेकर तुम सम्बंध तोड़ना चाहते हो। मैं बहुत दुखी हूँ। जल्दी से उत्तर दो।
              इस ई-मेल को भेजने के दो घण्टे बाद फिर कूकी ने अपना मेल बॉक्स चेक किया, मगर अब भी उसके नाम शफीक का कोई ई-मेल नहीं आया था। कूकी सोचने लगी, क्या इतनी छोटी-सी बात पर शफीक नाराज हो जाएगा ? चोरी और ऊपर से सीनाजोरी। 'यू हिन्दू पीपल' कहकर गाली भी देगा और ऊपर से भाव भी दिखाएगा। कितना निष्ठुर है  शफीक ? इस बार तो कूकी के रुठने की बारी थी। उसके मन से तो गुस्से के बादल छँट चुके थे। अब तो वह मन ही मन डर रही थी कि कहीं वह शफीक को खो न दे। वह तो ऐसे छटपटाने लगी थी जैसे किसी ड्रग एडिक्ट को ड्रग नहीं मिलने पर छटपटाने लगता है। वह अपनी मुट्ठियाँ भींचकर अपने भीतर के कंपन को रोकने का प्रयास कर रही थी। उसका अन्तर्मन शून्य  होता जा रहा था। भीतर ही  भीतर वह कटती जा रही थी। कुछ हल न देखकर वह  दीवार  पर हाथ रखकर रोने लगी।
              क्या कोई इस तरह  किसी के ऊपर गुस्सा करता है ? शफीक इतने दिनों से  उसको  लिखता आ रहा था, "तुम मेरी गोडेस हो, तुम मेरी सब कुछ हो।" क्या ये सारी बातें झूठ थी ? वह देर रात तक  सो नहीं पाई। बिस्तर में केवल करवटें बदलती रही।
              उसने अगले दिन डरते हुए काँपते हाथों से  इंटरनेट लगाया। उसका मन कह रहा था उसके नाम कोई ई-मेल नहीं होगा और वास्तव में मन की बात खरी उतरी। उसके नाम मेल बॉक्स में  कोई ई-मेल नहीं था। इसका मतलब शफीक फरेबी था ? वह  उसके साथ कोई खेल, खेल रहा था ? कूकी तो पहले से जानती थी वह कभी भी यहाँ की मोहमाया छोड़कर पेरिस नहीं जा पाती।उसमे  इतनी ऊँची उड़ान भरने का साहस  नहीं था। ऐसे भी दोनों अपनी अपनी दुनिया में खुश थे ।  उनकी  कल्पना  की दुनिया बड़े ही आराम से चल रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि शफीक पेरिस जाने से पहले  बालू के घर की तरह उनके सारे  संबंधों को तोड देना चाहता  हो ?
              कूकी को शफीक का ई-मेल नहीं मिलने से  दिन में भी अंधेरा नजर आने लगा था। जीवन अकेलेपन तथा निराशा से भर गया था।वह अपने मन की व्यथा को  किसके सामने  रखती ? कूकी ने कुछ समाधान न  मिलते  देख  फिर से एक ई-मेल लिखा।
              "शफीक, तुम्हें अगर  मेरी बात से कोई ठेस पहुँची हो तो मुझे माफ कर देना।मैंने  तुम्हारे बिना रहने की   बहुत कोशिश की, मगर सारी कोशिशें नाकाम रही। तुम आज तक  मुझे गोडेस कहकर  मेरे  चरण स्पर्श करते थे, आज मैं  तुम्हारे चरण स्पर्श करते हुए यह ई-मेल लिख रही हूँ। मेरी सूनी दुनिया में लौट आओ। लौट आओ अपने इस घर में। यह घर तुम्हारे बिना  काटने को  दौड़ता है। मैं   बेसब्री  से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ।  तुम्हारी असहाय एंजिल।
              कूकी इस ई-मेल को लिखने के बाद  सोचने लगी कि शफीक  इसको पढने के बाद  विचलित हो जाएगा। वह अपने आपको रोक नहीं पाएगा और जरुर ई-मेल लिखेगा। वह तो कूकी का एक नंबर का दिवाना है।वह  कितने दिनों तक उससे रुठ कर रह सकेगा ? अधिक से अधिक दो-चार दिन। कूकी रोने लगी, क्या वह  इतना जानने के बाद भी  उत्तर नहीं देगा ?   
              आसमान  में  बादल गरज रहे थे। बाहर तेज बारिश होने लगी  थी । आँधी-तूफान को देखते हुए कॉलोनी में बार-बार बिजली काटी जा रही थी।कूकी को  बारिश के इस सुहाने मौसम में  रह-रहकर शफीक की याद सताने लगी।कूकी  इस दौरान  शफीक को  लगभग पन्द्रह ई-मेल  भेज चुकी थी। दस-बारह से ज्यादा दिन बीत चुके थे। कूकी ने अब और  शफीक के ई-मेल की    आशा छोड दी थी। फिर भी  उसके हाथ आदत से मजबूर होकर  कम्प्यूटर में  शफीक के ई-मेल खोजते थे। पंद्रह दिन बीतने के बाद अचानक  उसके इन बॉक्स में शफीक का एक मेल नजर आ रहा था।  शफीक का ई-मेल आई.डी. वास्तव में कितना प्यारा लग रहा था।उसमे  कितना अपनापन नजर आ रहा था । वह ई-मेल आई.डी. मानो उसके जन्म-जन्मों का कोई साथी हो।
              कूकी ने अधीर होकर  ई-मेल खोला, मगर कम्प्यूटर बार-बार बंद हो  रहा था।कूकी  थक हारकर     चिल्लाने लगी, " शफीक , जल्दी आओ, शफीक।"
               कूकी की बात शायद कंप्यूटर ने  मान ली और शफीक का ई- मेल   धीरे-धीरे कर   खुलने लगा। शफीक ने बहुत ही संक्षिप्त में लिखा था, "मुझे इंटरपोल ने लंदन में हुए बम ब्लास्ट के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया है। लंदन पुलिस के अनुसार  उस बम ब्लास्ट में मेरे एक साथी का भी हाथ है। मेरा वह दोस्त मुझसे हर दिन फोन पर बात करता था। इसी वजह से पुलिस ने मुझे भी संदेह के घेरे में ले लिया है। मेरे चारों तरफ  कड़ी  निगरानी रखी गई है। यहाँ तक कि मुझे घर आने के लिए केवल एक घंटे की  मोहलत दी गई थी। उसी समय मैने देखा कि तुम्हारे खूब सारे मेल आए हुए थे। मैं नहीं कह सकता मैं इस परिस्थिति से  उबर   पाउँगा  भी या नहीं ? अगर मैं इस परिस्थिति से मुक्त हो जाता हूँ तब हम फिर बातें करेंगे। मुझे गलत मत समझना, प्लीज। तुम्हारा शफीक।"
              कूकी का दिल धडक उठा। कूकी ने कभी सोचा भी नहीं था  शफीक  का एक चेहरा ऐसा भी होगा। क्या यह वही शफीक  था जो कूकी के जीवन में  एक साल पहले उसके सपनों का सौदागर बनकर आया था । उसने कितने सारे रंगीन सपने  अपने झोले में से निकालकर कूकी के सामने रख दिए थे। क्या उसने  उन सपनों में  एक बम भी छुपाकर रखा था ? जो एक दिन उसके जीवन का सृष्टिकर्ता बनकर आया था। जिसने उसके जीवन की बगिया में तरह-तरह के फूल खिलाए थे। उसने उस बगिया के पानी के फव्वारों से इन्द्रधनुष के रंग छितराए थे और जिस बगिया की धरती को   अपनी नरम- नरम  घास  की  चादर  से ढका था। वह आदमी एक दिन विध्वंसकारी के रुप में नजर आएगा।  शायद वह झूठ बोल रहा होगा। शायद वह बचने का कोई रास्ता खोज रहा होगा. मगर उसके लिए बहाने बनाने की क्या जरुरत ? अगर वह बचना चाहता तो उसके लिए चुपचाप रहना ही पर्याप्त था। कूकी बीच-बीच में  कुछ दिन तक इंटरनेट लगाती रही।वह  कुछ दिनों तक    उदास रही मगर धीरे-धीरे कर वह अपने आप को समझाने लगी। वह चुपचाप रहने की कोशिश    करने लगती। वह शफीक को भूलना चाहती। उसके लिए इतने नाटक  की  क्या जरुरत थी ? इसका मतलब यह सब झूठ-मूठ का खेल था। मानो सच्चाई का कहीं पर भी नामोनिशान नहीं  था।  उसने अभी तक  शफीक के सारे ई-मेलों को  बहुत ही अच्छे ढंग से संभाल कर रखा था। एक ई-मेल में शफीक ने लिखा था, "रुखसाना,तुम्हे  वह मखमली रात  कैसी लगेगी, जिस रात को तुम आकाश की तरफ देखोगी और तुम्हें एक भी तारा दिखाई नहीं देगा। तुम्हें ऐसा लगेगा मानो पंछी गीत गा रहे हो, मगर उनके गीतों की ध्वनि तुम तक नहीं पहुँच पा रही होगी।  तुम्हारे अंदर दिल तो धड़क रहा होगा मगर धड़कन का तुम्हें कोई अनुभव नहीं हो रहा होगा। क्या तुमने कभी इस प्रकार का अनुभव किया है ,तुम अपने प्रेमी को पुकारने   में व्याकुल हो और तुम्हारे विरह के दर्द वाली चीत्कार उस तक नहीं पहुँच पा रही हो ?तुम  तब  क्या करोगी ? एक घिनौनी वास्तविकता और रंगीन स्वप्निल दुनिया के पाटों के बीच पिसी जाओगी और उस समय तुम किसी के योग्य भी नहीं रहोगी।"
              कूकी का मन अस्थिर हो गया था। शफीक क्या तुम पहले से जानते थे,  कि हमारे सम्बंध का अंतिम परिणाम यह होगा ? शायद यही वजह रही होगी इसलिए तुमने एक दिन लिखा था, "रुखसाना, पता नहीं क्यों, हमारे लिए वक्त और घड़ी  का  काँटा उलटा घूम रहा है। एक-एक पल और एक-एक सेकण्ड तुम्हारे और हमारे बीच के फासले को बढ़ाता जा रहा हो। वक्त एक दिन तुमको मुझसे बहुत दूर ले जाएगा और मेरे बहुत चाहने से भी मैं तुमको नहीं पा सकूँगा। मैं अगर  तुम्हारे जैसी एक परी होता तो इसी क्षण उड़कर तुम्हारे पास पहुँच जाता। तुम्हारी गोद में  बैठकर मैं समय के सारे षडयंत्रों को ध्वस्त कर देता। अगर मेरे पास इतने लम्बे दो हाथ होते तो मैं समय की सुई को वहीं रोक देता तथा तुम्हारी गोद को सिरहाना बनाकर चुपचाप सो जाता।"
              कूकी बेचैन मन से कम्प्यूटर में लगी हुई थी।वह  जिधर देखती, उधर उसे शफीक नजर आता था। कम्प्यूटर के अंदर एक निजी फोल्डर में उसके पासवर्ड की सुरक्षा कवच में चारों तरफ शफीक ही शफीक बंद था। उसका चित्त, उसकी भाषा, उसकी कविता। एक बार शफीक ने कहा था, "तुम बार-बार मुझे यह पूछती रहती हो, मैं तुम्हें इतना प्यार क्यों करता हूँ ? कैसे बताऊँ  इसका  कारण ? सब क्यों का उत्तर एक समान नहीं होता। तुम्हें  शायद रब ने  मेरे लिए बनाया हो कि तुम मेरी पतित जीवनचर्या, मेरी विचारधारा को बदलकर मेरी सारी समस्याओं का समाधान करते हुए मुझे शुद्ध और पवित्र बनाओगी। मैं तुमको प्यार करता हूँ क्योंकि तुमने ही मुझे मेरा परिचय दिया है। तुमने मुझे जीवन जीने की नई राह दिखाई  है और वे सारी बातें सिखाई है , जिन पर अमल करके  मैं एक अच्छा इंसान बन पाया हूँ।"
              क्या कूकी के जीवन में आने से पहले ही  शफीक  आतंकवादियों के साथ मिला हुआ था ? क्या वह  कूकी के प्रेम के कारण     आतंकवाद को छोड़ना चाहता था ? लेकिन पुराने दुष्ट कर्मों के लिए दण्ड तो मिलना ही था। क्या वह अपनी सजा पूरी भुगतने के बाद  कूकी के जीवन में फिर से  लौट     आएगा ? क्या कूकी उसको फिर से स्वीकार कर पाएगी ? नहीं, अब ऐसा  नहीं हो  पायेगा । कूकी का मन अभी भी इस बात की  गवाही नहीं दे रहा था कि शफीक कभी आतंकवादी रहा होगा। क्या हथियार उठाने  वाला  कभी कैनवास पर चित्र बना  सकता हैं ? अपनी प्रेमिका के लिए  कविता  लिख  सकता हैं ? खून के धब्बें देखकर जिसका मन विचलित नहीं होता, क्या वह फूल के सौंदर्य से प्रभावित हो सकेगा ?
            कूकी   को फिर भी संदेह होता है. शफीक ने लिखा था, "उसका कोई देश नहीं, उसका कोई धर्म नहीं। किसी भी आर्टिस्ट का कोई देश नहीं होता है।"
              बड़ा ही रहस्यमयी आदमी था शफीक। उसका प्रेम एक छलावा मात्र था। कूकी को बहुत कष्ट हो रहा था, मगर उसके आतंकवादी होने पर  विश्वास  भी नहीं हो रहा था।   कूकी की  आँखें आँसुओं से भर आई थी , मगर वह रो नहीं पा रही थी। किसे दिखाएगी वह ये आँसू ? किसे कहेगी वह कि उसके अंदर एक और सत्ता मौजूद थी ? रुखसाना की सत्ता। किसे बताएगी कि उसके भीतर की एक सत्ता कहीं लुप्त हो गई है और वह उसे खोज नहीं पा रही है।
              शफीक ने लिखा था, "रुखसाना, इंसान अधिकतर  अपनी  सारी जिंदगी एक पूर्णता को खोजने में बिता  देता है  । जबकि पूर्णता कहीं नहीं होती। अधिकतर लोग उसके पीछे भागते-भागते ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में पहुँच जाते हैं जहाँ से उन्हें अपने उत्तर अनसुलझे और क्षणिक  लगते हैं। रुखसाना, हमारा सम्बंध कभी भी उस जड़, निर्जीव और आवेग शून्य प्रज्ञा के पास नहीं पहुँचे। इसके लिए मैं अल्लाह से दुआ  मांगता हूँ। पता नहीं, अल्लाह मेरी दुआ कबूल करेंगे भी या नहीं ?"
              शायद इंसान को पहचानना दुनिया का सबसे कठिन काम होता है। या फिर आधुनिक राजनीति और मीडिया मिलकर इंसान के अंदर के सतेज, सुंदर और  रंगीन फूलों जैसे कोमल भावों को छिन्न-भिन्न कर कुरुप बना देते हैं।क्या वह उसको  ई-मल करने वाले शफीक को  पहचानती थी ? कौन था यह शफीक? उसकी प्रेम कविताएँ, उसकी बेचैनी, अपनी बेटी  की शादी के समय पब्लिक बूथ में कतार लगाकर खड़ा रहने का पागलपन, ये सब क्या था ?क्या  यह सब आज के शफीक के साथ कोई मेल खाते हैं ?                     
              कूकी मानो एक लम्बा सपना देख रही हो। ऐसा सपना जो टूटने का नाम ही नहीं ले रहा हो। टूटते-टूटते वह सपना फिर नया  रूप ले रहा था। सपने में कोई उसका हाथ  पकड़कर  एक अलग साम्राज्य में ले जा रहा था, जहाँ किसी तरह की कोई हिंसा नहीं, कोई छलावा नहीं। बचा है तो केवल प्यार ही प्यार। उस साम्राज्य में केवल मधुर संगीत की धुनें तथा लाल-नीली रोशनी से भरी मनोरम धरती। कूकी शायद अभी-अभी नींद से उठ रही है और सपनों वाला मायावी साम्राज्य गायब हो चुका था। और उसे सामने नजर आ रहा था चारों तरफ घनघोर बादलों से घिरा हुआ आकाश, कडकती हुई बिजली और  मूसलाधार बारिश के कारण छत से टपकता पानी। दीवारों से झरने की तरह पानी बह रहा था ।  तभी  छोटे बेटे ने आकर कहा, "मम्मी, देखो, सामने वाली सड़क पर कितना पानी भरा हुआ है ? कार भी पानी में  डूबती जा  रही है। नीचे वाले क्वार्टर में पानी घुस गया है।"
              कूकी का सपना टूट गया। वह   खिड़की से  बाहर की तरफ देखने लगी। बाहर जल तांडव मचा हुआ था। मुम्बई शहर पानी में डूबता जा रहा था। अचानक उसे अनिकेत  का ध्यान आया । अनिकेत कहाँ है ?

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