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               " आइ एम नॉट इन सेफ पोजीशन।" शफीक ने अपने ई-मेल में लिखा था। कूकी ने सोचा भी नहीं था कि इतने दिनों के बाद शफीक का कोई ई-मेल भी आएगा। शफीक का इससे पहले वाला ई-मेल आए हुए दो महीने बीत चुके थे। और कूकी ने भी हर दिन इंटरनेट लगाना बंद कर दिया था। वह तो यह भी भूल  चुकी थी कि इस घर के बाहर  इस  धरती के किसी कोने पर उसकी एक अलग दुनिया भी थी।उसे  बीच-बीच में  शफीक की याद सताने लगती थी, मगर अब पहले जैसी वेदना नहीं होती थी। कुवैत जाने के दिन नजदीक आते जा रहे थे। वह अपने घर-संसार में बहुत व्यस्त रहने लगी थी। बड़े बेटे की हताशा को दूर करने के लिए तथा छोटे बेटे की मुस्कराहट को  बरकरार रखने के लिए उसने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया था।
              पता नहीं कैसे एक दिन वह अपने आप पर काबू नहीं रख सकी और कम्प्यूटर में सीडी लगाते समय इंटरनेट को लाग ऑन कर दिया। कभी यह वही घर था जिसमें वह रोजाना आती जाती थी। अचानक कई दिनों के बाद अपने नाम का ई-मेल देखकर उसे अचरज होने लगा था। उसमें सेन्डर का नाम तक देखने का धैर्य नहीं था  । हो सकता है किसी ने वायरस भेजा हो या यह भी हो सकता है चेटिंग का कोई इनविटेशन हो या कोई स्पैम हो। मगर उसका सारा अंदाजा गलत साबित हुआ।  उसने जब  सेंडर का नाम देखा तो खुशी के मारे उछल पड़ी। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि शफीक उसे और ई-मेल करेगा। वह तो सोच रही थी शफीक कारावास में होगा। उसका मन हमेशा शफीक को कुख्यात अपराधी मानता था, मगर शफीक का ई-मेल देखकर उसके मन से  संदेह हवा हो गया था  । वह ई-मेल सात दिनों से मेल बॉक्स में पड़ा हुआ था। उसने अभी तक उसे खोल कर नहीं देखा था। इस ई-मेल का उत्तर नहीं पाकर क्या सोचता होगा शफीक ? शफीक ने उस ई-मेल में लिखा था, " आइ एम नॉट इन ए सेफ पोजीशन। मेरे मेल और फोन पर सख्त निगरानी रखी जा रही है। आइ  हेव लास्ट माई जॉब एंड इन रुइन्ड कंडीशन। आइ  एम ए विक्टिम ऑफ फेट, बेबी। मेरा इंसानियत के ऊपर से  विश्वास उठ गया है। शमीम, तबस्सुम का वह नवयुवक  प्रेमी आखिर में एक  इन्फोर्मर  निकला।"
               ई-मेल पढ़ते-पढ़ते कूकी के दिल की धड़कनें  बढती जा रही थी। उसे पहले से ही कुछ अंदेशा लग चुका था कि शफीक के अरेस्ट होने के बाद ये सब घटनाएँ अवश्य घटेगी। यह दुखद खबर पाने के बाद उसका मन खिन्न हो गया। शफीक ने साथ में यह भी लिखा था, अगर मुमकिन हुआ तो बाद में वह और लंबे ई-मेल करेगा। मगर तुम  इस दौरान  और  कोई  ई-मेल मत करना। मैं नहीं चाहता कि मेरी  खातिर तुम्हें और कोई दिक्कत हो। रुखसाना, तुम केवल भगवान से प्रार्थना करना कि हम लोगों की कभी न कभी इस जीवन में मुलाकात हो जाए। मैं नहीं जानता, मैं पाकिस्तान के सैनिक प्रशासन द्वारा किए गए इस षडयंत्र के जाल से बच पाऊँगा भी या नहीं।मुझे  सैनिक प्रशासन  तरह-तरह से परेशान कर रहा है। पता नहीं मेरा कया हाल होगा ? अगर रब ने चाहा तो हम एक दिन जरुर मिलेंगे। तुम्हारा, शफीक।"
              शफीक के  इस ई-मेल को पढ़ने के बाद कूकी दुख के मारे टूट गई।  उसकी  मन ही मन दौड़कर पाकिस्तान जाने की इच्छा हो रही थी। उसका मन कर रहा था कि      वह शफीक का सिर अपनी गोद में रखकर सहलाए । मैं जानती थी शफीक तुम एक अपराधी नहीं हो सकते हो। मेरा अंदाज सही था कि तुम हो न हो किसी खतरनाक षडयंत्र का शिकार हुए हो। मेरा अभी भी तुम्हारे ऊपर अटूट  विश्वास है। मगर कूकी एक लाइन भी नहीं लिख पाई थी, क्योंकि शफीक ने उसको ई-मेल करने के लिए मना किया था।
कूकी को तबस्सुम के ऊपर खूब गुस्सा आ रहा था। वही असली अपराधी है।शफीक आज  उसके मुक्त आचरण की वजह से  फँसा था। बाकी शफीक की कोई गलती नही थी ?  वैसे  भी तबस्सुम के कई सारे पुरुष मित्र हैं, अगर वह एक और मिलिटरी ऑफिसर को अपना मित्र बना लेती  तो क्या हो जाता ? उसके जैसी छिनाल औरत  को  क्या फर्क पड़ता ? अगर वह अपने मिलिट्री   वाले ब्वायफ्रेंड की बात मान लेती और उसके ऑफिसर के सामने अपने आप  को सुपुर्द कर देती तो शायद आज उन्हें यह भयानक दिन नहीं देखना पड़ता।
              कूकी इन छोटी-छोटी चीजों को  समझ नहीं  पा रही थी। मिलिट्री   ऑफिसर की किस बात की वजह से तबस्सुम  एक लम्बे अर्से तक अवसाद का शिकार बनकर पत्थर की मूर्ति की तरह बैठ गई थी  ? और शफीक  उसका विरोध करने के कारण धीरे-धीरेकर  एक चक्रव्यूह में फँस गया। एक बार किसी औरत की इज्जत चले  जाने के बाद और अच्छे-बुरे ज्ञान का क्या मतलब ?
               भले ही, कूकी शफीक को कितना भी प्यार करे, मगर अनिकेत के अलावा किसी ने उसके शरीर को छुआ नहीं है। ऐसी कौनसी चीजों का अभाव था ? या ऐसा क्या गम था ? या फिर अधिक कामुकता की वजह से तबस्सुम जैसी लड़कियाँ नशे में धुत्त होकर इस तरह के मुक्त-यौनाचार में लिप्त हो जाती हैं ? उसे ऐसा लगने लगा जैसे एक बहुत बड़ा देश, धर्म, मुक्त-यौनाचार और नशे के लपेट में आ गया है।
              आजकल एशिया और  अफ्रीका  के लोगों की मानसिकता पूरी तरह से विकृत हो गई है। एक तरफ पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण तो दूसरी तरफ उनकी गुलामी मानने से इंकार ने उन्हें एक दोराहे  पर लाकर खड़ा कर दिया है। आजकल इन देशों   में साम्यवाद और पूंजीवाद की बात नही की जाती है। आजकल लोग शीतयुद्ध को लेकर चिंतित नहीं हैं। आज के जमाने में पूरी दुनिया आतंकवाद से काँप रही है। आजकल आतंकवाद की विभीषिका और उसका विकराल रूप  किन्हीं निर्दिष्ट भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत सीमाबद्ध नहीं है। आतंकवाद न तो कोई नीति है और न कोई नियम। किसी देश को अगर समूल नष्ट भी कर दिया जाए तो भी आतंकवाद को जड़ से उखाड़कर नहीं फेंका जा सकता। आतंकवाद तो मानो रक्तबीज का एक वंशज है। जैसे ही खून की एक बूँद जमीन पर गिरेगी तो असंख्य आतंकवादी और पैदा हो जाएँगे।
              कूकी  पूरा  दिन उदास रही। वह सोच रही थी, शायद शफीक बेल पर छूटा होगा।वह  नौकरी चली जाने के कारण  अपना आत्म सम्मान खो चुका हगा और पागलों की भाँति इधर-उधर घूम रहा होगा या फिर घर के किसी कोने में अपना मुँह छुपाकर बैठा होगा। वह अपनी तकदीर को कोस रहा होगा। कभी कूकी तो कभी रुखसाना, तो कभी खुद के बारे में तो कभी पेरिस के बारे में सोच-सोचकर वह पागल हो जाता होगा। क्या करती होगी उसकी बेटियाँ और तबस्सुम ?
               कूकी का मन शफीक की बेटियों के बारे में सोचकर  उदास हो  रहा था।कूकी ने कभी सोचा भी    नहीं था कि  किसी अनजान आदमी के बच्चों के लिए  उसके मन में करुणा के भाव उमड़ पडेंगे । उसकी बेटियों पर क्या बीत  रही होगी ?वे लोग  किस तरह  अपने घर का खर्च चलाते होंगे ? शफीक के बिना वह परिवार कहीं असहाय तो नहीं हो गया होगा ? कूकी के मन को तरह-तरह की चिंताएँ  बेचैन कर  रही थी।
              उसके मन में फिर भी यह पक्का  विश्वास था कि शफीक एक फरेबी आदमी नहीं है। शफीक ने उसके साथ किसी तरह का कोई विश्वासघात नहीं किया है। वास्तव में वह बिना मतलब  के मुश्किल में फँस गया। शफीक का आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है और न ही वह कोई आतंकवादी है। यह जानकर कूकी के मन में  विश्वास के बीज फूटने लगे थे। अगर वह आतंकवादी होता तो वह कभी यह नहीं लिखता कि वह सैनिक प्रशासन के अत्याचार का शिकार हुआ है। केवल यह कहकर बात को टाल सकता था कि वह सब उसकी  तकदीर का दोष है। यह छोटा-सा ई-मेल कूकी के मन में एक नए योगसूत्र का काम कर रहा था, एक कोमल आत्मीयता को जन्म दे रहा था।
              पता नहीं, पाकिस्तान सरकार की कानून व्यवस्था कैसी है ?उसे और   कितने दिनों तक  जेल में सड़ना पडेगा ?कूकी नहीं जानती थी कि  अभी शफीक एक विचाराधीन अपराधी है अथवा अपराध सिद्ध होने के बाद जेल की सजा काट रहा था। वह तो यह भी नहीं जानती थी कि उसे किस अपराध के लिए दंड दिया गया है। शफीक की  असलियत की खबरें उसको किससे प्राप्त होती ? नगमा फिलहाल  अपने पति के साथ अमेरिका में रहती है। कूकी के पास ना तो नगमा का कोई पता था और ना ही उसका ई-मेल आइ.डी। क्या तबस्सुम अभी भी अपने सपनो की दुनिया में विचरण कर रही होगी ? या शफीक को जेल से छुडवाने के लिए  कोर्ट- कचहरी के चक्कर लगा रही होगी ?
              एक बार शफीक ने लिखा था, "रुखसाना, जानती हो। मैं कोई आज से लड़ाई नहीं कर रहा हूँ। मेरी स्पष्टवादिता के कारण मैं कई बार आलोचना का शिकार हुआ हूँ।जब मैं  'गोडेस ' पेंटिंग को लेकर  विवादों के घेरे में था, तब तो आम जनता ने मुझ पर पथराव भी किया था।मैं  नेशनल स्कूल ऑफ आर्ट से डिप्लोमा करने से पहले  लाहौर यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपोलोजी का छात्र था।मैंने  उस समय एक सेमिनार में  अपना एक पेपर पेश किया था, तब भी मैंने खतरनाक आलोचना का  सामना किया था। जानती हो, उसमें मेरी कुछ भी भूल नहीं थी। मैं यह सिद्ध करना चाहता था कि  सिन्धु घाटी सभ्यता का उदगम हिंदुस्तान से अलग नहीं है और  उसकी कला संस्कृति, पुरातत्व प्रमाण आदि सभी हिन्दुस्तान में मिले अवशेषों  जैसे ही है।           
              बेबी, मुझे उस कॉलेज जमाने से ही   लोगों का  विरोध  सहन करने की आदत पड़ गई है।मुझे  कॉलेज के प्राचार्य तक ने  अपने चेम्बर में बुलाकर खूब डाँटा था। उन्होंने कहा था मैने राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में एक निराधार पेपर पेश कर उनकी नौकरी के लिए खतरा पैदा कर दिया है। तुम तो जानती हो, किसी मानव जाति के भविष्य निर्माण के लिए इतिहास की सही जानकारी होना जरुरी है। तब रुखसाना, उसमें  जबरदस्ती  उलटफेर करने की क्या आवश्यकता है ? तुम्हें जानकर घोर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान में बच्चों      को  इतिहास की पढ़ाई सातवीं  कक्षा  के बाद शुरु होती है। अरब के इतिहास को यहाँ का मूल इतिहास माना जाता है।"
              कूकी ने उत्तर में लिखा था, "सदियों से इतिहास को एक खेल समझा गया है। जैसे ही सरकार बदल जाती है, इतिहास का कोर्स भी बदल जाता है। कभी कोई सरकार किसी को नायक का दर्जा देती है, तो दूसरी सरकार उसे खलनायक बना देती है। बाप के द्वारा पढ़ा गया इतिहास बेटे के समय में पूरी तरह से बदल गया होता है। तुम्हीं कहो, शफीक, इस दुनिया में इंसान को कब निष्पक्ष भाव से सही इतिहास पढ़ाया जाएगा।"
              पता नहीं क्यों, कूकी को फिर से वे सारी पुरानी बातें याद आने लगी। क्या कहीं ऐसा तो नहीं, शफीक ने फिर से किसी विवादास्पद बात को तूल दे दिया होगा और सरकार की नजरों में वह कानून का गुनहगार साबित हो गया होगा।
             उसकी मन ही मन प्रबल इच्छा हो रही थी कि एक छोटा-सा ई-मेल भेजकर कम से कम शफीक की खबर ले लेती।उसने  मन मसोस कर  अपने आप पर काबू पा लिया, क्योंकि शफीक ने उसे पहले से ही ई- मेल नहीं भेजने के लिए  आगाह कर दिया था ।             
कूकी कम्प्यूटर के पास से  अनमने भाव से उठकर  बाहर चली गई। वह सोच रही थी,  कि शफीक  एक न एक दिन जरुर  फिर से उसे ई-मेल करने लगेगा। महीने, साल, पाँच साल या फिर जेल से मुक्त होने के बाद वह उसे जरुर ई-मेल करेगा। उसे उस दिन का  बेसब्री  से इंतजार रहेगा।



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