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     "मगर और क्या किया जा सकता है ?" अनिकेत ने कहा था। "मेरे हाथ में कुछ होता तब न, मैं कुछ कर सकता। हेडक्वार्टर से आर्डर आया हुआ है। अगर मैं नहीं जाऊँगा तो कोई दूसरा चला जाएगा, मगर उसके बाद कंपनी   कभी भी मुझे   विदेश यात्रा के लिए नहीं भेजेगी।  सब लोग तो विदेश यात्रा के लिए मुँह फाडकर बैठे हैं। अगर यह मौका  मैने जानबूझकर  हाथ से जाने दिया तो लोग मेरी खिल्ली उडाएँगे।"
              कूकी और अनिकेत दोनो कुछ समय तक गंभीर मुद्रा में बैठे रहे। फिर कूकी कहने लगी, "विदेश यात्रा की बात तो अच्छी है। मगर कंपनी अमेरिका या कनाडा भेजती या फिर कम से कम मलेशिया या थाइलैण्ड भेजती तो बात कुछ और होती। मगर कुवैत का नाम सुनने मात्र से ही  मन में एक अजीब-सा भय पैदा होता है।"
              "भय किस चीज का ? क्या कुवैत में लोग नहीं रहते हैं ?"
              "भय तो लगेगा ही। भय वाली जगह है वह।" कूकी ने कहा, "कुवैत में अभी-अभी दो भारतीय ड्राइवरों को    अगवा कर लिया गया था।"
             अनिकेत  गुस्से से कहने लगा, "तुम मुझे क्या ड्राइवर समझती हो ? नौकरी करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। जब ओखली में सिर दिया तो फिर मूसलों  का क्या डर ? आई एम  पेड फॉर देट। अगर कंपनी चाहेगी तो मुझे नर्क में भी भेज सकती है और मैं उस नर्क में जाने के लिए भी  बाध्य हूँ।"
              "हम तो ऐसे भी तुम्हारे जाने के बाद  अधमरे  हो जाएँगे।" कूकी कहने लगी, "तुम एक साल के लिए कुवैत जा रहे हो। हम न तो तुम्हारे साथ कुवैत जा पाएँगे और ना ही उड़ीसा।बच्चों की पढाई  एक साल तक  बंद तो नहीं की जा सकती। इसके अलावा, अभी तो बड़े बेटे के लिए कैरियर बनाने का क्रिटिकल समय है। ऐसे समय में तुम चले जाओगे तो मै अकेली क्या करुँगी ? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। मुझे तो चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा है।"
              अनिकेत अभद्र हँसी हँसते हुए  कहने लगा, "अब समझ में आया न, घर चलाना बहुत कठिन काम है। अभी तक तो तुम्हारे कंधों पर  घर  का बोझ पड़ा नहीं, अभी से चिंता करने लग गई हो।"
              "चिंता नहीं होगी ?" कूकी ने पलटकर सवाल किया।
              "वही तो मैं भी सोच रहा हूँ।" अनिकेत ने कहा,
              "मगर किया क्या जा सकता है ? सही में एक साल तुम्हें अकेले काटने में बहुत परेशानी होगी।"
              "ऐसे बुरे वक्त में तुम मुझे छोड़कर जाना चाहते हो, अनिकेत।" कूकी मन ही मन सोचने लगी।वह  कल अगर   समस्याओं से घिर जाती है तो ? उस समय उसका साथ कौन देगा ? अगर शफीक के बारे में छानबीन करती हुई पुलिस उसके पास पहुँच जाती है तो उसे कौन बचाएगा ? अगर इंटरपोल को कोई सुराग मिल जाता है तो ?कूकी ने  अपने मनोभोवों को छुपाने का प्रयास करते हुए  कहा, "तुम तो जानते हो, अनिकेत। बीच-बीच में मेरी तबीयत खराब हो जाती है।"
              अचानक अनिकेत गुस्से से तमतमा उठा। कूकी ने उस समय उसके इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की थी। अनिकेत ने कहा, "तो क्या मैं इस सदारोगी के लिए चौबीसों  घंटे पहरा देता रहूँ ?"
              " ऐसी गंदी भाषा का इस्तेमाल क्यों कर रहे हो, अनिकेत ?"
              "कौन-सी गंदी भाषा ?मैंने  ऐसा क्या कह दिया  ? याद करो, तुम जब से  इस घर में आई हो, ऐसा कोई महीना बीता है, जिस महीने में तुम बीमार नहीं पडी हो ?"
              "पिछले ग्यारह महीने से मैं डॉक्टर के पास नहीं गई हूँ।" कूकी ने कहा।
"अच्छी बात है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि तुम बीमार नहीं पड़ी हो. खैर, अगर तुम्हे अपनी  तबीयत को लेकर इतनी ज्यादा चिंता सता रही है तो मैं अपनी माँ को यहाँ बुला लेता हूँ  वह तुम्हारी देख-भाल करेगी." 
              "हे भगवान ! तुम्हारी माँ से मैं अपनी देखभाल करवाऊँगी। वह तो खुद बुड्ढी हो गई है। अगर उनकी तबीयत बिगड़ गई तो उनको कौन संभालेगा ? बेहतर यही होगा, मैं  अकेली बच्चों के साथ एक साल तक रह लूँगी। आगे से माँ को यहाँ बुलाने की बात मत करना।"
              "ठीक बात कह रही हो।" अनिकेत ने चिंतित होकर कहा।
              "मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, क्या करना उचित रहेगा ? एक तरफ तुम लोगों को एक साल के लिए छोड़कर जाने की बात सोचने से घबराहट होने लगती है, दूसरी तरफ मैं यह सुनहरा मौका भी हाथ से गँवाना नहीं चाहता।"
              'मौका' शब्द सुनते ही कूकी को अचानक शफीक की याद आ गई। वह भी इन्टरव्यू देते समय इसी तरह  अंतर्द्वंद्व  में रहता था। रुखसाना, क्या करुँगा ? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। तुम्हें  अभी साथ में लेकर पेरिस जाऊं या जॉब पक्का होने के बाद तुम्हें साथ ले  जाऊं । कम से कम छह  महीने तो साथ में रह पाओगी। मेरे दिमाग में यह भी बात आ रही है अगर कहीं मैं इन्टरव्यू में फेल हो गया तो तुम्हें पाने का एक सुनहरा अवसर मेरे हाथ से निकल जाएगा। पता नहीं क्यों, पुराना सम्बंध बीच-बीच में तरोताजा हो जाता है। जितना भी वह भूलना चाहे, मगर वह भूल नहीं पाती है।
              अनिकेत ने उस दिन  कूकी और बच्चों को अपने साथ  ले जाकर   खूब घुमाया था। मुम्बई के जौहरी बाजार से उसके लिए एक मंगलसूत्र भी खरीदा था और बच्चों के लिए जीन्स  की  पेंट, टी-शर्ट और पर्स। पापा की विदेश-यात्रा को लेकर बच्चें बहुत खुश थे। एक की  उन्नति को देखकर दूसरे को खुशी होगी ही मानो वे एक ही सूत्र में  पिरोये  हो। मगर अनिकेत बहुत चिंतित  दिखाई दे रहा था।उसने  तभी तो  बच्चों के लिए खूब  सारा  सामान विदेश जाने से पहले ही खरीद  लिया ।
               कूकी ने सोने से पहले अनिकेत से कहा था, "अनिकेत, तुम निÏश्चत होकर विदेश जाओ। हमें कोई दिक्कत नहीं होगी। देखते ही देखते चुटकियों में एक साल पार हो जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा। कॉलोनी में तो सब जान-पहचान वाले लोग हैं। कोई परेशानी नहीं होगी। उसमें भी जुगलकर जैसे समाजसेवी आदमी भी है, जिन्होंने मेरे लिए रक्त दान किया था।"
             कूकी सोच रही थी, काश ! ऐसा भी होता कि वह उड़ना जानती। अगर वह उड़ना जानती तो वह उड़कर बहुत दूर चली जाती। मगर यहाँ तो बात दूसरी थी। अनिकेत अपना घरौंदा छोड़कर उड़ने जा रहा था। यही यथार्थ है। जितना भी कठोर हो, कर्कश हो या निष्ठुर हो, उसे तो मानना ही पडेगा। कूकी को अचरज हो रहा था। एक दिन उसको इसी फ्लैट में एकदम एकांत  चाहिए  था। उस एकांत में कूकी और शफीक के अलावा कोई भी न हो। और जब अनिकेत एक साल के लिए जा रहा है तो खुश होने के बजाय  उसके चेहरे पर मायूसी छा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था मानो वह एकाकीपन उसे खा जाएगा।
              आधी से ज्यादा रात बीत चुकी होगी। बच्चें और अनिकेत गहरी नींद में सो गए थे, मगर कूकी की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वह अपने बिस्तर से चुपचाप उठकर बैठ गई। उसका मन भयंकर तरीके से व्यग्र हो रहा था। एक साल के लिए अनिकेत उसको छोड़कर जा रहा है। पता नहीं, उसका क्या होगा ? किसके आधार पर  जीएगी  वह ?
             उसने  मन की बेचैनी को कम करने के लिए  अपनी  किताब की अलमीरा में से एक डायरी बाहर निकाली जिसमें उसने शफीक की  कुछ  कविताएँ लिखकर रखी थी। शफीक की गिरफ्तारी के बाद कूकी बुरी तरह से टूट चुकी थी।उसने  एक अनजान भय के कारण  अपने कम्प्यूटर में से शफीक के सारे ई-मेल डिलीट कर दिए थे।उसने  डिलीट करने से पहले  शफीक की कुछ कविताएँ अपनी डायरी में नोट कर ली थी। डायरी के पन्ने पलटकर वह शफीक की एक कविता पढ़ने लगी,
"शमां जलती है उन दो परवानों के लिए
जिनके सिवाय जमीं पर कोई नहीं
केवल तुम और मैं,
सामने हो
एक  लाजवाब  रात्रि भोज और
सुरा की बोतल।
समय के इस स्थिर पल में हम एक साथ हैं
दुनिया में वे बिरले  ही है, जो इस प्यार को पाते हैं
और तारों से टिमटिमाती रात में
केवल हमारी छोटी-सी दुनिया में
तुम, मैं और जलती हुई वह शमां।
हम महसूस करते हैं एक दूसरे की धड़कन
पतझड़ के हवा के झोंके
विचलित करते मेरे दिलोदिमाग को
वे लंबी आहें और मधुर मुस्कान
हम एक दूसरे के आगोश में
एक धधकती ज्वाला
जो हमारे दिल में जलती
हम एक दूसरे का चुम्बन करते
मानो देवदूत अधरों का रसपान करते
मेरे लिए तुम जन्नत की एक परी हो
तुम्हें पाने के लिए मैं मौत को भी गले लगा लूँगा
मगर यहाँ इस मेज पर केवल तुम और  मैं ।"

              तभी एक कार  रात की नीरवता को चीरते हुए पार्किंग में आकर रुक गई। अवश्य मिसेज सूद ही होगी।  वह अधिकांश समय बाहर दावत करती है और देर रात घर लौटती है। कूकी की आँखें बोझिल होने लगी। आखिरकर वह टेबल लैम्प बुझाकर अनिकेत के पास जाकर सो गई।अभी भी  दोनों के बीच में  एक लम्बा  गोल तकिया पड़ा हुआ था । कूकी यह देखकर मन ही मन हँसने लगी। वह सोचने लगी,  जहां  उसका मन सरहद लांघकर दूर-दूर भाग  रहा है  और  यहाँ पास-पास सोते हुए भी उन्होंने तकिया डालकर अपने लिए दो अलग-अलग इलाके बाँट लिए है।
              कूकी की आँखों में दूर-दूर तक नींद नजर नहीं आ रही थी। वह बिस्तर पर पड़े-पड़े दाएँ-बाएँ करवटें बदल रही थी। अनिकेत नींद मे बड़बड़ा रहा था।  उसकी बड़बड़ाहट की आवाज कभी स्पष्ट सुनाई दे रही थी तो कभी अस्पष्ट। अनिकेत को हाथ से हिलाते हुए कूकी ने पूछा,
              "क्या कोई बुरा सपना देख रहे थे ?"
              करवट बदलते हुए वह बुदबुदाने लगा, "बहुत डरावना सपना।"
              "कैसा डरावना ?"
              " आइ एम नॉट इन ए सेफ पोजीशन" फिर से गहरी नींद की आगोश में जाते हुए अनिकेत ने कहा।

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