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              "मगर चलना तो पड़ेगा ही।" शफीक ने फोन पर कहा था।
              "रुखसाना, आखिरकर तुम्हे मेरी खातिर चलना ही पड़ेगा। अन्यथा उम्र के इस पड़ाव में इंटरव्यू देने की मुझे  क्या जरुरत थी   ? क्या जरुरत थी मुझे पेंटिंग का काम छोड़कर पैराथिसिस लिखने की ? मुझे लगता है दोनों देशों के सम्बंधों में बढ़ती कटुता हमें इस जन्म में कभी मिलने नहीं देगी, इसलिए मैं सोच रहा था कि किसी तीसरे देश में जाकर एक साथ रहा जाए। नगमा का निकाह सिर पर है। ऐसे समय में तुम्हारा कहीं और जाना क्या शोभा देगा ?"
              "निकाह में मेरा क्या काम है ? तबस्सुम है वह सब कुछ कर लेगी। जानती हो, रुखसाना, नगमा के निकाह को लेकर तबस्सुम इतनी व्यस्त हो गई है कि वह डेटिंग वगैरह सब कुछ भूल गई है। इस बारे में कुछ पूछने पर कहने लगतीहै , पहले बेटी के निकाह का काम पूरा हो जाए, उसके बाद दूसरे काम। सही में तबस्सुम ही है जिसकी वजह से मेरी दुनिया बची हुई है। नहीं तो मेरी दुनिया तो कब की  उज़ड़ गई होती।"
              "फिर भी तुम्हें उसकी हर तरीके से मदद करनी चाहिए।"
              "मेरा काम तो सिर्फ तुम्हारी सेवा करना है।"
              "कहाँ से बात कर रहे हो, शफीक ? पेरिस कब जाना है ?"
              "रुखसाना, मैं कराची से बात कर रहा हूँ। बड़ी बहिन के पास कुछ रुपए उधार लेने आया था। यहाँ से परसो रात को पेरिस के लिए रवाना होउंगा । रुखसाना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं हो ? तुम्हें अकेला छोड़कर जाते हुए मुझे बहुत दुख लग रहा है। मन ही मन ऐसा महसूस हो रहा है, कि खुदा न खास्ता, अगर मैं इंटरव्यू में फेल हो जाता हूँ तो तुम्हें पाने का एक सुनहरा मौका मेरे हाथ से निकल जाएगा। रुखसाना मैं बाहर से फोन कर रहा हूँ इसलिए तुमसे प्यार की  बातें  नहीं कर पाऊँगा। पेरिस पहुँचने के बाद तुम्हें फोन करुँगा। मुझे सिर्फ चार दिन का वीसा मिला है, इसलिए मुझे जल्दी ही घर लौटना पड़ेगा। आजकल वीसा पाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

              "हाँ आतंकवाद के कारण से। खासकर तुम्हारे देशवासियों की वजह से..." कहते-कहते कूकी गहरी  सोच में पड़ गई।  शफीक  उसके बारे में क्या सोचेगा ? मगर जो भी हो, बात तो सही है।
              कूकी  की  इन बातों पर शफीक ने कोई ध्यान नहीं दिया ? उसने सिर्फ इतना ही कहा "अभी मैं फोन रख रहा हूँ। बाद में बात करेंगे।" कहते हुए शफीक ने लोगों की नजरों से  छुपकर  रिसीवर पर चुंबन लेते हुए फोन को नीचे रख दिया।
              कहीं कूकी की बात से शफीक दुखी तो नहीं हो गया ? कूकी की टिप्पणी ने कहीं उसके दिल पर चोट तो नहीं  पहुँचा दी ? कहीं कूकी के मन में ऐसी शंका तो नहीं है, कि  शफीक आतंकवादियों के साथ मिला हुआ है ? कई बार एक विशेष विचारधारा से सम्बंध रखने वाले लोगों के बाहरी सामाजिक जीवन और भीतरी व्यक्तिगत जीवन में रात-दिन का फर्क होता है। पता नहीं, कूकी किसी खतरनाक षडयंत्र का शिकार तो नहीं होती जा रही है।
              वह समझ नहीं पा रही थी कि इंसान-इंसान के बीच इतना वैर क्यों है ? क्या धर्म ही दहशतगर्दी की जड़ है ?   इसके पीछे आर्थिक और नैतिक शोषण कोई कारण नहीं है ? ना तो विकसित पूँजीवादी देश तीसरी दुनिया के लोगों का शोषण करना बंद कर रहे हैं और ना ही तीसरी दुनिया के लोग आतंकवाद से अपना पीछा छुड़ा रहे हैं। चाहे जो भी कारण रहे हो आर्थिक या धार्मिक, कष्ट तो आखिरकर इंसान ही पाता है।
               कूकी ने कभी  भी  शफीक के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर बातचीत नहीं की थी । कभी भी उसने दोनो देशों की राजनैतिक गतिविधियों अथवा धार्मिक मामलों पर  चर्चा नहीं की थी ।  इन सारी फूट डालने वाली बातों से वे दोनों अपने आपको कोसों दूर रखते थे। कूकी ने कभी भी शफीक से यह सवाल नहीं किया, क्यों तुम्हारे देश के लोग हमारे देश के लोगों को जान से मार देते हैं ? इसी तरह शफीक  कभी-कभी  कूकी को कहता था, काश ! दोनो देश पूर्व और पश्चिम बर्लिन की तरह मिलकर एक  हो जाएँ ?
              वे दोनों सिर्फ अपनी दुनिया में मशगूल रहते थे। उनके चारों तरफ भयंकर हो-हल्ला, खून-खराबा, बम धमाके, मार-काट, चीत्कार-हाहाकार हो रहा था, मगर उन्हें किसी भी तरह की कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ रही थी। वे दोनों तो मानो किसी दूसरे प्रकार की उपलब्धि प्राप्त करने में लगे हुए थे। मानवीय निम्न चेतना से मानो वे काफी ऊपर उठकर एक अद्भुत सुख और आनंद की खोज में लगे हुए थे।
              कूकी मानो चेतना की वह उच्चतम अवस्था नैरात्मा हो। एक सुंदरी   शबरी की तरह। और शफीक एक पागल की भाँति पहाड पर चढ़ते हुए उसे मिलने आ रहा हो। इतने बड़े पहाड़ पर चढ़ना कोई मामूली काम नहीं था। उस सहज सुंदरी की योनि कई किलोमीटर दूर-दूर तक  सुवासित हो रही थी। उस कूकी के बालों में मयूर के पंख लगे हुए थे और गले में वह रंग-बिरंगी मोतियों की माला पहने हुए थी। वह  बेसब्री से अपने प्रेमी के आने का इंतजार कर रही थी। आज प्रेमी से उसका मिलन होगा और उस मिलन से  एक नैसर्गिक सुख की प्राप्ति होगी । एक दूसरे में समा जाने का बाद वे लोग अपना बनावटी मुखौटा उतारकर फेंक देंगे। देखते-देखते वे अहंकार शून्य हो जाएँगे। तब उनके चारों तरफ न रहेंगे समाज के बंधन और न ही रहेगा संस्कृति और सभ्यता का छिछोलापन। ना ही वे लोग पेड-पौधों, नदी-नालों, पशु-पक्षियों तथा खगोलीय पिण्डों की भाँति प्रकृति के अधीन सीमाबद्ध होकर रहेंगे।
              कूकी का मन उदास हो गया था क्योंकि उसने शफीक को शुभकामनाएँ देने के स्थान पर उल्टी-उल्टी बातें की थी।  इतनी दूर वह इंटरब्यू देने जा रहा था, उसे अपनी ओर से शुभकामनाएँ अवश्य देनी चाहिए थी।
              जो होना था, वह हो गया। क्या उसे अभी एक ई-मेल में शुभकामनाओं का छोटा-सा संदेश भेज देना ठीक नहीं होगा ? पेरिस जाने से पहले अगर वह अपना ई-मेल चेक करेगा तो कम से कम उसे पाकर  खुश हो जाएगा।
              ई-मेल भेजने के बाद कूकी के मन का बोझ हल्का हो गया। टी.वी. में चल रहे फिल्मी गीत की धुन पर अपने सुर मिलाकर वह गुनगुना रही थी। उसी समय उनके गाँव से फोन आया था " तुम्हारी  सास की तबीयत ज्यादा खराब है। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है।"
              कूकी ने तुरंत अनिकेत के मोबाइल पर फोन किया। वह सोचने लगी कि अब उन्हें जल्दी ही गाँव जाना पडेगा। इतने कम समय में ट्रेन का रिजर्वेशन मिलना भी मुश्किल होगा। यही सोचकर  अपने गाँव जाने के लिए अगले ही दिन उन्होने फ्लाइट पकड़ ली थी । अनिकेत पूरी तरह से नर्वस हो गया था और कूकी उसको बार-बार सांत्वना दे रही थी।
              कूकी गाँव आने  के बाद  इतना व्यस्त हो गई थी कि उसे शफीक के बारे में सोचने तक का वक्त नहीं मिल पा रहा था। अस्पताल में दस दिन भर्ती रहने के बाद  सास स्वस्थ होकर  घर लौट आई थी। सास की सेवा-सुश्रूषा तथा परिजनों से मिलने में दस दिन ऐसे बीत गए कि उसे पता तक नहीं चला। दुनियादारी की दिक्कतों तथा दुख के समय कूकी के लिए अनिकेत ही काम आता था, शफीक नहीं। दिन भर के काम से कूकी इतनी थक जाती थी कि बिस्तर पर लेटते ही उसको नींद आ जाती थी।
              माँ के स्वास्थ्य को लेकर अनिकेत चिंतित था। उसने कूकी से कहा "कुछ दिनों के लिए हम माँ को अपने साथ ले जाते हैं।" यह सुनते ही कूकी के दिल की धड़कनें बढ़ने लगी। वह अपनी गुप्त दुनिया के बारे में सोचकर दुखी हो रही थी। अनिकेत और बच्चों को लेकर वह आराम से अपनी दोनों दुनिया सँभाल लेती थी।
              दोनों दुनिया में वह हँसती थी, रोती थी। दोनो दुनिया में वह समागम करती थी। जब अनिकेत नहीं होता था तो शफीक आ जाता था और जब शफीक नहीं होता था तो अनिकेत आ जाता था।
              यह अलग बात थी कि सास को कम्प्यूटर की भाषा समझ में नहीं आएगी, फिर भी क्या वह घंटों-घंटों तक कम्प्यूटर के पास बैठ पाएगी ?क्या  इस नीरव घर में वह बार-बार  शफीक का फोटो निकालकर देख पाएगी ? क्या अपनी साँसों में शफीक की साँस अनुभव कर पाएगी ?
              अनिकेत की माँ को साथ ले जाने की बात से कूकी का मन उदास हो गया था। लेकिन उसमें  विरोध करने का साहस भी नहीं था । अगर वह विरोध करती तो किस आधार पर ? अनिकेत अपनी बीमार माँ  को  सेवा-सुश्रुषा के लिए अपने साथ ले जाना चाहता था। यह बात तो बिल्कुल उचित थी। अगर वह अपनी माँ को साथ नहीं ले जाता तो यह अनुचित बात होती।
              पता नहीं, वह कितने महीने उनके साथ इधर रहेगी  ? इधर दीवाना शफीक उसे फोन किए बिना नहीं रहेगा। उसे ऐसा लग रहा था अब उसके लिए शफीक से और सम्बंध बनाए रखना  नामुमकिन होगा।  कूकी शायद  अपना आखिरी ई-मेल भेजने के बाद उड़ीसा आई है। और  उसके लिए अब  कभी भी ई-मेल लिखना सम्भव नहीं होगा।
               उड़ीसा आने के एक दो दिन बाद कूकी   मुम्बई जाना नहीं चाहती थी,यह जानकर सबको बहुत अचरज हो रहा था .। उसे ऐसा लग रहा था कि वह अपना गाँव छोड़कर अन्यत्र कहीं भी ढंग से  नहीं  रह पाएगी। मुम्बई से मानो उसका मन फट गया था। गाँव में रहने के लिए उसे किसी तरह की परेशानी महसूस नहीं हो रही थी क्योंकि साथ में वहाँ भतीजे भी रहते थे। कूकी मन ही मन भगवान को धन्यवाद दे रही थी कि अच्छा हुआ माँ साथ नहीं चलेगी ?
             कूकी  ने मुम्बई लौट आने के बाद मौका पाकर अपना मेल-बॉक्स चेक किया। उसने देखा कि शफीक के दो लम्बे-चौड़े ई-मेल उसका इंतजार कर रहे थे। कूकी सब काम निपटाकर ई-मेल पढ़ने बैठ गई। उस ई-मेल में शफीक ने लिखा था, "मैने तुम्हें पेरिस से फोन किया था। तुम्हारे फोन की घंटी बज रही थी, मगर तुमने मेरा फोन नहीं उठाया। क्या किसी तरह की परेशानी थी ? या फिर तुम्हारा टेलिफोन खराब हो गया है ? बड़ी आशा के साथ मैने तुम्हें पेरिस से फोन किया था, मगर मुझे मेरी रुखसाना नहीं मिली।  इन्टरव्यू अच्छा हुआ है। ऐसा लग रहा है कि खुदा ने मेरी अर्ज सुन ली है। तुम भी भगवान शिव की पूजा करो ताकि मुझे यह नौकरी मिल जाए। सही में, रुखसाना तुम मेरे साथ यहाँ  आकर रहोगी न ?”
              कूकी को लग रहा था कि यह कुछ नहीं है , बल्कि शफीक का पागलपन बोल रहा है। क्या इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा में इतनी आसानी से उसको नौकरी मिल जाएगी ? इसके अलावा, पश्चिम एशिया के लोग दक्षिण एशिया के लोगों से नफरत करते हैं। इन्टरव्यू अच्छा होने पर भी जॉब मिल जाएगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है।
              कूकी पहला ई-मेल पढ़ने के बाद  दूसरा ई-मेल पढ़ने लगी।शफीक ने  दूसरे  ई-मेल में  लिखा था "यहाँ आने के बाद मैने अपना प्रवास तीन दिन के लिए और बढ़ा दिया है। जानती हो, रुखसाना, बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि  यहाँ मेरी मुलाकात लिन्डा के साथ हो गई। उसकी हालत ठीक नहीं है। उसका शराबी पति उसे बहुत ही कष्ट देता है, यहाँ तक कि उस पर हाथ भी चला देता है। उसने कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी भी दी है। वह कह रही थी, जब उसे तलाक मिल जाएगा तब वह अमेरिका चली जाएगी। तीन-चार दिन वह मेरे साथ रही। मैने उसको मानसिक सांत्वना देने की  बहुत कोशिश  की। उसके अलावा, मैने इन दिनों में उसके साथ शारीरिक सम्बंध भी बनाए। सही में, लिन्डा बहुत दुखी है। मैं जानता हूँ, तुम्हें मुझ पर गुस्सा आ रहा होगा कि मैं लिंडा के साथ क्यों सोया " वह मुझे दिल से चाहती है। उसको मेरी सख्त जरुरत थी। रुखसाना, मेरे लिए यह एक विचित्र बात थी कि मै  उसके साथ सोने पर भी  तुम्हें नहीं  भुला पा रहा था।मेरे लिए  यह घटना  किसी आश्चर्य से कम नहीं थी।मुझे  उसी समय मुझे समझ में आ गया था  कि तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है। तुम ही मेरी सब कुछ हो।"
              ई-मेल पढ़कर कूकी एकदम आवाक रह गई। उसके मुँह से अपने आप निकल  गया , शफीक....।












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