15

15

              "शफीक, अरे योगी ! तुमने ऐसा क्यों किया ? क्या तुम्हें पता नहीं था कि पर्वतारोहण में एकाग्रचित्त होना अनिवार्य है ? थोड़ा-सा भी मन इधर-उधर होने से पाँव फिसल  सकता  हैं। तुमने इतना जानने के बाद भी  पीछे की तरफ मुड़कर क्यों देखा ?"
             कूकी को  इस बार  पहले की तरह  लिंडा  से ईर्ष्या  नहीं हुई, बल्कि वह तो केवल शफीक के बारे में सोचने लगी,कि  क्या उसने अभी तक  अपने मन को पवित्र नहीं किया ? पवित्र शब्द कूकी का नहीं है। शफीक इस शब्द को अक्सर  अपने ई-मेलों में प्रयोग करता है, "रुखसाना, जानती हो, तुम्हें पाने के लिए मुझे पवित्र बनना पड़ेगा। मैं जब तक     एक अच्छा  इंसान नहीं बन जाता हूँ तब तक मैं तुम्हें नहीं पा सकूँगा। तुम कहाँ जानती हो तुमको ई-मेल लिखने से पहले मैं 'वोजू' करता हूँ। जानती हो 'वोजू' क्या होता है ? नमाज पढ़ने से पहले शारीरिक शुद्धता के लिए नहाने की प्रक्रिया को 'वोजू' कहते हैं।"
             कूकी नहीं जानती थी, कि क्यों शफीक पवित्र  होना चाहता है ? क्यों उसका मन पाप की भावना से इतना दबा हुआ है ? क्यों अपने आप को वह अधम  -पापी समझता है ?
              लिन्डा के साथ उसकी मुलाकात महज एक संयोग हो सकती है, शायद पुराने दोस्त  का दुख दर्द  उसको लिन्डा के नजदीक खींच लाया होगा। लिन्डा के साथ उसके सम्बंध स्थापित हो गए, ठीक है। मगर शफीक के लिए  कूकी को यह बात  बताना  कहाँ तक उचित था ? क्या उसके दिमाग में एक बार भी यह ख्याल नहीं आया कि यह बात बताने से कूकी को कितना दुख लगेगा।
              नहीं चाहते हुए  भी उस दिन कूकी का दिल टूट गया था। कूकी अपने अशांत दिल को शांत करने का भरसक प्रयास कर रही थी । परन्तु उसकी सारी कोशिशें निरर्थक  हुए  जा रही थी।वह  भले ही,  कम्प्यूटर के सामने जाकर बैठ गई, मगर शफीक  को ई-मेल लिखने की इच्छा नहीं हुई।


              कूकी ने कभी भी शफीक को बदलने की कोशिश नहीं की। शफीक के चरित्र में जितने भी परिवर्तन आए थे, वे सारे उसकी अपनी मेहनत का फल  था । मगर ये सारे परिवर्तन शफीक क्यों चाहता था  ? केवल कूकी को पाने के लिए ? कूकी तो पहले से ही उसके बारे में सब कुछ जानती थी, और तब भी उसने मन ही मन शफीक को अपना मान लिया था। फिर ये बातें दोहराने का क्या मतलब ?
             उस दिन कूकी ने कोई ई-मेल नहीं लिखा था, मगर अगले दिन उसके मेल बॉक्स में उसके नाम का एक ई-मेल  आया  हुआ पड़ा था । "रुखसाना, क्या हुआ तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है ? मेरा इससे पहले वाला ई-मेल मिला ? घर पर नहीं हो ? रुखसाना तुम्हें कैसे बताऊँ ? मैं बहुत दुखी हूँ फिर से हम दोनों एक लम्बे समय के लिए एक दूसरे से जुदा होने वाले हैं. तुमसे जुदा होने की बात सोच लेने मात्र से मुझे खुद पर गुस्सा आने लगता है। मन ही मन खुदा से शिकायत करने की इच्छा होती है, तुम हमें इतना दुख क्यों दे रहे हो ? मगर क्या करुँ ? नगमा के निकाह में मुझे जाना ही पड़ेगा। मैं गाँव में किसी को भी  अच्छी तरह से नहीं जानता। मेरे लिए बेहतर  यही होगा, कि गाँव में कुछ दिन पहले से जाकर सब तैयारियाँ कर लूँ। तबस्सुम खुद भी यही चाहती है, हम लोग अभी से ही गाँव जाकर तैयारियाँ करना शुरु कर दे। तुम्हारे बिना  गाँव में तीन सप्ताह गुजारने की बात दिमाग में आते ही  आँखों से आँसू छलक जा रहे हैं। गाँव में कहीं भी सायबर कैफे  नहीं है। पता नहीं, पब्लिक बूथ में आई.एस.डी. की सुविधा है अथवा नहीं ? रुखसाना मैं  तुम्हारे बिना वहाँ कैसे रहूँगा ?
              तुम्हें यह जानकर खुशी होगी, नगमा खुद चाहती है कि उसकी इंडिया वाली अम्मी कैसे भी करके उसके निकाह में   शामिल हो। मैं तो कई बार उसको समझा चुका हूँ ऐसा होना  नामुमकिन  है। दोनो देशों के बीच सम्बंध अच्छे नहीं है, इसलिए इंडिया वाली अम्मी का तुम्हारे निकाह में शरीक होना असम्भव है। अगर तुम आ जाती तो सभी परिजनों तथा सगे-सम्बंधियों से मैं तुम्हारा परिचय करवा देता।
               रुखसाना, मैं आज बुरी तरह से थक गया हूँ।मैंने  तबस्सुम के साथ शाम से  लेकर रात दस बजे तक  दुकान-दुकान  घूमकर नगमा के लिए साड़ी और गहनें खरीदे हैं। यहाँ की औरतें प्रायः साड़ी नहीं पहनती हैं, मगर उच्च वर्ग की कुछ भद्र महिलाएँ अपने आप को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए कभी-कभी निकाह जैसे उत्सवों में साड़ियाँ पहनती हैं। तुम अगर यहाँ आती तो  मैं  तुम्हारे लिए  एक लाल रंग की साड़ी जरुर खरीद कर लाता।
             नगमा का निकाह  सात लाख रुपए के मेहर में  तय हुआ है। मेहर क्या होता है, जानती हो ? किसी कारण से अगर पति अपनी बीवी को तलाक देता है तो उसे मेहर में कहे हुए रुपयों को बीवी को देना होगा। हमारे यहाँ निकाह  की सारी रस्में एक घंटे में पूरी हो जाती हैं, मगर उस यादगार को शानदार बनाने के लिए ये सारी रस्में चार दिन तक खींची जाती है। निकाह से पहले लड़की को हल्दी का उबटन लगाया जाता है। घर में नाच-गाना चलता है। काश ! तुम यहाँ आ जाती तो इस निकाह में और चार  चाँद  लग जाते।
              रुखसाना, इस दौरान मैं सारी बातें भूल गया हूँ। मैं एक कलाकार हूँ, मेरा एक स्वतंत्र जीवन है, ये बातें भी मेरे दिमाग से निकल चुकी है। मेरी एक ही ख्वाहिश बची है कि पेरिस जाने से पहले नगमा का निकाह हो जाए। उसके बाद मैं आराम से तुम्हारे साथ पेरिस   में दो साल बिता सकूँगा। रुखसाना, तुम चलोगी न मेरे साथ ? आओ, बेबी, मैं गाँव जाने से पहले  तुम्हें प्यार की बारिश में नहला दूँ। उसके बाद अगला पैराग्राफ काम-क्रीड़ा के वर्णनों से भरा हुआ था। शफीक ने अंत में  लिखा था, रुखसाना मेरे लौट आने तक इंतजार करना।"
               शफीक  को इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं हुआ कि कूकी ने नाराज होकर उसको ई-मेल नहीं किया है। कूकी को आज से बहुत लंबे समय तक शफीक का इंतजार करना पड़ेगा। खाली समय मिलने पर भी वह कम्प्यूटर के सामने बैठकर क्या करेगी ? क्या वहाँ शफीक उसको याद करेगा ? या निकाह में व्यस्त होकर रह जाएगा ? ऐसे तो वह कुछ भी काम नहीं करता है। सारा कामकाज तबस्सुम सँभालती है। दिखने में नगमा कैसी होगी ? कैसा होगा उनका गाँव, उनका घर-द्वार ? न तो उसने शफीक को देखा है और ना ही नगमा को ? फिर भी उसे मन ही मन ऐसा लग रहा था जैसे  वह अपने घर के किसी नजदीकी रिश्तेदार की शादी मे नहीं जा पा रही है। उस समय उसकी आँखों के सामने दोनो देशों की दुश्मनी या आतंकवाद में हताहत हुए लोगों की लाशें कुछ भी नजर नहीं आ  रहा था । उसे बम के धमाकों की गूँज भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। देशों के बीच सरहदें मनुष्य ने बनाई है, भगवान ने नहीं। यह सरहद नाम की चीज आदमी से आदमी के बीच केवल वैमनस्य को जन्म देती है। अगर इस सरहद को एक बार मिटा दिया जाए तो हमें पता चलेगा सरहद के उस पार तथा इस पार के आदमियों में कोई फर्क नहीं है। उनके दुख दर्द, भूख, शौक  , आनन्द, संभोग की संवेदनाओं में भी कोई अंतर नहीं है। अगर थोड़ा-बहुत भी अंतर होता तो नगमा अपने निकाह में उसका इंतजार क्यों करती ? और क्यों कूकी का मन उस निकाह में नहीं जाने के कारण उदास होता ? कूकी को आश्चर्य होने लगा। यहाँ तक कि वहाँ के और यहाँ के रीति-रिवाजों में भी कोई फर्क नहीं है। दोनों जगह वही हल्दी और मेहंदी लगाने की रस्में अदा की जाती है। शादी से पहले ही नाच-गाना और वही महोत्सव की धूम। मगर समय इंसान को पूरी तरह से बदल देता है। जो कभी दोस्त हुआ करता था, आज वह दुश्मन है।
              कूकी इन तीन सप्ताह तक  अनिकेत की दुनिया में डूब गई। वे सब लोग अपनी नई सेन्ट्रो कार में बैठकर सिद्धि विनायक मंदिर में दर्शन करने गए थे। कूकी छोटे बच्चे की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी. मगर अनिकेत कूकी के इस कार्य से असंतुष्ट था। अनिकेत ने एक बार कूकी से कहा, "अगर वास्तव में बच्चों के भविष्य की इतनी चिंता है तो बेहतर यही रहेगा उनके लिए एक मराठी  ट्यूशन मास्टर खोज लो।" अनिकेत की बात सुनकर कूकी ने वास्तव में  पड़ोसियों से पूछताछ करके एक  ट्यूशन  मास्टर की व्यवस्था कर ली थी।   हालांकि छोटे बेटे का जन्म मुम्बई में हुआ था मगर उसकी पकड़ मराठी भाषा पर  इतनी  नहीं थी। यह तो उसकी बदकिस्मती थी कि उसे महाराष्ट्र बोर्ड़ से पढ़ाई करनी पड़  रही थी। उन्होंने अच्छा स्कूल मानकर  अपने छोटे बेटे   का दाखिला मराठी  मीडियम स्कूल में करवा दिया था। अनिकेत मराठी भाषा के अलावा  बाकी सारे विषय पढ़ा लेता था .
             शफीक  के  ना  होने के कारण  कूकी को घर में कुछ भी काम नजर नहीं आ रहा था, इसलिए अनिकेत और बच्चों के घर से चले जाने के बाद    दिन में खाली घर उसे काटने को  दौड़ता था। घर में  कुछ काम नहीं होने के कारण वह समय बिताने के लिए पड़ोसियों के साथ जुड़ गई थी। कभी इधर-उधर की गपशप करके समय बिताती थी तो कभी किट्टी पार्टी में जाकर, तो कभी हौजी खेलकर। तब भी उसके अंदर शफीक की यादें जीवित थी। एक विशिष्ट समय पर वह छटपटाने लगती थी। कभी-कभी उसकी इच्छा होती थी कि वह अपने घर चली जाए। हो सकता है शफीक का फोन आया होगा। वह उसे बेचैनी से ढूँढ़ रहा होगा। हौजी में रुपए कमाने या गँवाने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
एक  दिन कूकी अपने घर से बाहर  नहीं निकली। सारा दिन घर में बैठे-बैठे  शफीक के फोन  का इंतजार करती रही और  शफीक के पुराने ई-मेल खोलकर  पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते वह  भावुक हो गई। सोचने  लगी, कब लौटेगा शफीक ?उसे  इतने दिन पहले जाने की  क्या जरुरत थी?  सोचते-सोचते  वह बहुत  बेचैन  हो  रही थी। उसी समय  मिसेज मालवे का फोन आया। वह किट्टी पार्टी में जाने के लिए कह रही थी। मगर  कूकी ने तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर उसे मना कर दिया।वह  इसी तरह हर रोज  अपनी अन्य सहेलियों को पेट की  बीमारी का बहाना बनाकर   मनाकर देती थी। जब कोई उसे घर पर  मिलने आता था तो वह दर्द का झूठा नाटक करने लगती थी। वह इस प्रकार धीरे-धीरे अपने आपको  सबसे अलग करती गई।
      नगमा का निकाह होने में एक दो दिन बचे थे कि अचानक शफीक का फोन आया। उसी नियत समय पर  जिस समय वह हमेशा फोन करता था। कूकी ने आश्चर्य चकित होकर उससे पूछा "नगमा का निकाह तो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। आप इतना जल्दी लाहौर कैसे लौट आए ? सब सकुशल तो है ?"
      "सब  सकुशल है, परसों नगमा का  निकाह होगा। मेहमानों से  घर भरा हुआ है । मैं तो  यह भी नहीं जानता था कि  मेरे इतने सारे सगे-सम्बंधी  भी हैं। तुम सबकी कुशलता के बारे में पूछ रही  थी ? लेकिन मैं बिल्कुल भी खुश नहीं हूँ। तुम्हारे बगैर यहाँ मन नहीं लग रहा है। यह मेरे लिए बहुत ही कठिन समय है। और दो दिन बचे हैं। जैसे ही नगमा का निकाह हो जाएगा, वैसे ही मैं तुम्हारे पास लौट आऊँगा।
      "तुम तो कह रहे थे गाँव में  फोन करने की सुविधा नहीं  है फिर फोन कहाँ से  कर रहे हो ?"
      "अरे,  बेबी ! मैं अभी एक छोटे से कस्बे में हूँ जो हमारे गाँव से पैंतीस किलोमीटर  की दूरी पर है।"
      "यहाँ  किसी काम से आए हो  ?"
      "काम ? क्या मैं तुम्हारे साथ बातचीत करने के लिए नहीं आ सकता हूँ।"
      "इतनी दूर ? तुम क्या पागल हो गए हो शफीक ?"
      "रुखसाना, मैने तुम्हें फोन किया, क्या  तुम्हें अच्छा नहीं लगा ?"
      "नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैं  तो कब से तुम्हारे फोन  का इंतजार ही कर रही  थी।"
      "रियली ! कम टू माई आर्म्स, बेबी।"
            बात करते समय बार-बार टेलिफोन लाइन कट रही थी इसलिए शफीक दिल खोलकर बात नहीं कर पाया। कूकी का मन भी नहीं भरा था। फिर भी मानो वह किसी वन्डरलैंड में घूम रही हो, ऐसे ही सपनों में डूबी  हुई थी कूकी।
      निकाह का काम सम्पन्न होने के एक दिन  बाद शफीक सचमुच में लाहौर लौट आया था।वह  पन्द्रह-सोलह   दिनों  के बाद अपनी कूकी के पास लौटा था, इसलिए उसने खुशी में  कूकी को ई-मेल लिखा था "हम लोग अभी-अभी   अपने गाँव से लौटे हैं। तबस्सुम घर सजा रही है। शमीम घर के काम में उसका हाथ  बटा रहा है। शमीम के बारे में जानती हो ? तबस्सुम का नौजवान प्रेमी। मैं सीधे अपने स्टडी-रुम में आ गया हूँ। यहाँ तक कि  ' वोजू  भी नहीं किया, सीधे तुम्हे ई-मेल लिखने बैठ गया। दिल खाली-खाली लग  रहा है, रुखसाना। सीने के भीतर एक सूनापन-सा मह्सूस होने लगा है। बेटी को विदा करते समय बाप का दिल इस कदर टूट जाएगा, मुझे मालूम नहीं था। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मैं अपने आपको रोक न सका, मैं फूट-फूटकर रोने लगा। तुम अगर  मेरे पास होती तो  मैं तुम्हारे कंधे पर अपना सिर  रखकर रोता।  घर में नगमा का टेबल,  उसका  सामान, दीवार पर टंगी हुई उसकी तस्वीर, अलमारी में पडे हुए उसके कपड़े, शू-स्टैण्ड पर  रखी   चप्पलें सारी चीजें जैसी की तैसी पड़ी हुई हैं, मगर नगमा नहीं है।वह  पूरे बाईस  साल तक इस घर में  घूमती रही , मगर आज यह   घर   उसके लिए   पराया हो गया। शफीक ने एक पंक्ति यह भी लिखी थी।रुखसाना,  मेरा यह छोटा-सा ई-मेल देखकर दुखी मत होना। रात को एक अच्छा ई-मेल करुँगा।
      कूकी ने उसको धीरज बँधाते हुए एक ई-मेल किया था, "शफीक,  चिन्ता मत करना। नगमा अपने पति  के साथ है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। शफीक,देखना  एक दिन  ऐसा भी आएगा जब नगमा तुम्हारे  घर में  ज्यादा समय के लिए  रुकना नहीं चाहेगी। अपने पति के पास जाने के लिए उसका मन व्यग्र हो उठेगा।"
      कुछ  ही दिनों में कूकी और  शफीक  अपनी दुनिया में वापिस लौट आए थे। फिर से  तबस्सुम ने पहले की तरह डेटिंग  पर जाना शुरु कर दिया था  । गाँव से  लौटे हुए अभी दस बारह  दिन भी  नहीं  बीते होंगे, कि  शफीक  ने कूकी को एक खुश खबरी दी। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी  में उसकी नौकरी लग गई थी । इस बात से वह इतना खुश  हो गया था मानो उसे स्वर्ग का सारा राज्य नसीब हो गया हो। उसने अपने ई-मेल  में लिखा था, "रुखसाना, सब कुछ  इतनी आसानी से हो जाएगा ये  मैने कभी सपने में भी नहीं  सोचा था। मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है कि  वास्तव में, मैं पेरिस जाऊँगा। इससे पहले मैं     कई बार अपने दोस्तों  के पास  अमेरिका और  लंदन गया हूँ, मगर मुझे  इतनी खुशी  पहले कभी  नहीं हुई। रुखसाना, इससे  पहले मेरी विदेश यात्रा का एक खास मकसद रहता था, वह था मेरा केरियर। लेकिन इस बार मेरा एक ही मकसद  है, अपने प्रेम को पाना। आइ एम वेरी मच थ्रिल्ड, बेबी। जस्ट दियर आर फ्यू स्टेप्स टू रीच द मून। व्हेअर आइ  विल बी विद यू एंड  यू विल बी विद मी।"



Comments

Popular posts from this blog

21

18

17