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              ऐसा जीवन मुझे कभी नहीं चाहिए । कूकी सोच चुकी थी। वह मन से बहुत दुखी थी। वह गहरे अवसाद में डूब चुकी थी, फिर भी आत्महत्या करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। इसके बावजूद भी वह ऐसे जीवन से घृणा करने लगी थी।

              कूकी ने पहले कभी सोचा नहीं था कि उसे इस जीवन में एक अनोखी दुनिया भी देखने को मिल सकती है। जहाँ अनिकेत स्वच्छता-प्रिय तथा अति-क्रोधी स्वभाव का था, वहाँ शफीक परवर्टेड़ मगर उदार स्वभाव का था।

              अगर कोई उससे यह सवाल करता, तुम अनिकेत और शफीक दोनो में से किसको चाहोगी ? तब उसका उत्तर होता, "दोनो को।" भले ही, दोनो आदमियों के बारे में सुनने से किसी के भी मन को खराब  जरुर लगता। मगर कूकी यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि किसी एक को छोड़कर दूसरे आदमी के पास वह किसी हालत  में खुश नहीं रह पाएगी। लेकिन क्या यह संभव हो सकता है।

              कूकी के इस गुप्त संबंध के बारे में जब अनिकेत को पता चलेगा तो क्या वह इस बात को सहन कर सकेगा ? शायद वह गुस्से से पागल हो जाएगा। गुस्से-गुस्से में या तो वह कूकी की हत्या कर देगा या फिर वह खुद जहर खाकर आत्म-हत्या कर लेगा। क्रोध के आवेश में आकर वह सारे घर को तहस-नहस कर देगा। घर में लाशों के ढेर लगा देगा। फिर टूटे हुए घर के अंदर लाशों के ढेर के ऊपर बैठकर वह अपने किए पर पश्चाताप करने लगेगा।

              एक बार वह जब अनिकेत के साथ ट्रेन में यात्रा कर रही थी, तब कोई आदमी कूकी की तरफ घूर-घूरकर देख रहा था। यह देखकर अनिकेत गुस्से से लाल-पीला हो गया था। रातभर वह चैन की नींद नहीं सो पाया था। वह कूकी को अपनी जायदाद समझता था। वह उसको जब भी चाहे, गाली दे सकता है, जब भी चाहे उसके साथ मार-पीट कर सकता है, जब उसकी इच्छा हो वह उसे प्यार कर सकता है, तरह-तरह के आभूषणों तथा नई-नई साड़ियों से लाद सकता है और अपनी अद्र्धांगिनी बनाकर पार्टियों और पिकनिकों में साथ ले जाकर घुमा  सकता है।

              पता नहीं, अब कहाँ रहती होगी तिस्ता ? यूनिवर्सटी में पढाई करते समय वह कूकी की रुम-मेट थी बहुत ही स्मार्ट और साथ ही साथ स्वतंत्र विचारधारा की भी। एक दिन कूकी की अनुपस्थिति में उसने पता नहीं अनिकेत को क्या कह दिया था कि जब वह अपने गाँव से लौटी तो अनिकेत ने उससे कहा था, "कूकी, आज मेरा मन तुम्हारे चरण-स्पर्श करने का हो रहा है।" यह सुनकर कूकी  के  आश्चर्य की सीमा नहीं रही। वह सोचने लगी, कहीं अनिकेत पागल तो नहीं हो गया है ? इस तरह चरण स्पर्श करके अनिकेत क्या कहना चाहता है ?

              उस समय अनिकेत आई.आई.टी. खड़गपुर का एक होनहार छात्र था। वह अक्सर कूकी को मिलने वहाँ आता था। इस बार अनिकेत के आने की खबर कूकी को पता नहीं थी, इसलिए हर शनिवार की तरह इस शनिवार को भी वह अपने गाँव चली गई थी। सोमबार को जब वह गाँव से लौटी थी, तो तिस्ता ने अनिकेत के मिलने की खबर सुनाई थी। और एक घंटा बीता भी नहीं होगा कि अनिकेत ने उसके सामने यह नाटकीय प्रस्ताव रखा था, "मैं तुम्हारे चरण-स्पर्श करना चाहता हूँ।"
              "तुम तिस्ता पर इतना विश्वास  करते हो ? कुछ जानते भी हो, यह कैसी लड़की है ?"
              कल से मैं तुम्हारे यहाँ की लड़कियों का चाल-चलन देख रहा हूँ। तिस्ता की बात सुनकर तो मुझे आश्चर्य हो गया। सचमुच, कूकी तुम वन्दनीय हो। अच्छा करती हो तुम हर शनिवार को अपने घर चली जाती हो।"

              कूकी को समझ में आ गया था कि तिस्ता ने अपना साहस दिखाते हुए यहाँ की सारी गुप्त  बातों को अनिकेत के सामने प्रकट कर दिया होगा । तिस्ता एक दिलफेंक लड़की थी। उसे इस बात का बिल्कुल भी मान नहीं रहता था कि किसके सामने उसे कब, क्या बोलना चाहिए। एक स्थायी प्रेमी होने के बावजूद भी वह अक्सर अपने दूसरे  ब्वायफ्रेन्डों   के साथ शहर में इधर-उधर घूमती थी। यहाँ तक कभी-कभी वह अपने ब्वायफ्रेन्डों    के साथ शहर छोड़कर बाहर भी चली जाती थी।

              अनिकेत ने कहा था, "एक साल और इंतजार कर लो, फिर मैं तुम्हें विवाह-बंधन में बाँध लूंगा। उसके बाद तुम केवल मेरी बनकर रहोगी। केवल मेरी।"

              बंधन, हाँ बंधन नहीं तो और क्या ? सोने के पिंजरे में एक बंदी  की  जिंदगी जी रही थी कूकी। उसे दूर गगन में उड़ जाने की प्रबल इच्छा हो रही थी। एक बार अनिकेत ने कूकी के साथ अप्रत्याशित  व्यवहार  किया था, जिसकी उसे अनिकेत से बिल्कुल  भी उम्मीद नहीं थी। उस समय कूकी  एम ..ए. फाइनल ईयर की छात्रा थी। उस समय घर में लोग शादी का प्रस्ताव लेकर आ रहे थे। इस विषय में वह किसी से कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। हर समय मानसिक तनाव से ग्रस्त रहती थी। हर दिन अनिकेत के पास पत्र-व्यवहार भी नहीं कर पा रही थी। एक दिन अचानक उनके हॉस्टल में पहुँच गया था अनिकेत। दाढ़ी बढ़ी हुई थी, बाल विखरे हुए थे, उस अवस्था में वह किसी पागल से कम नहीं लग रहा था। उसके हाथों में एक पोलिथीन का पैकेट था। उस पैकेट को उसने गुस्से के साथ वह पैकेट थमा दिया था कूकी के हाथों में।

              "इस पैकेट के अंदर सब-कुछ है तुम्हारे सारे फोटोग्राफ्स, तुम्हारी चिट्ठियाँ और कुछ गिफ्ट जो तुमने मुझे समय-समय पर दिए थे। सब रखो अपने पास, बाद में मुझे दोष मत देना। अब मुझे आजाद कर दो। तुम्हारे साथ शादी कर, मैं तुम्हारी अवहेलना का शिकार बनना नहीं चाहती। बल्कि मैं चाहता हूँ तुम खूब खुश रहो।"

              अनिकेत की आँखें जैसे आग उगल रही हो। हॉस्टल के सामने कुछ प्रेमी-युगल प्रेमालाप करने में व्यस्त थे, अचानक वे सभी अनकी तरफ घूरकर देखने लगे। कूकी  की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। वह सोचने लगी थी, क्या सचमुच में उनके बीच का संबंध विच्छेद होने जा रहा है ? लेकिन क्यों ? उससे  ऐसी क्या भूल हो गई ? कूकी को मन ही मन कुछ खो देने का अहसास हो रहा था ? बिना किन्हीं कारणों के उसके पाँव थरथराने लगे थे। उसका फूट-फूटकर रोना भी अनिकेत को रोक नहीं पाया था। बहुत गुस्से में लौट गया था अनिकेत हॉस्टल से उस दिन।

              क्या अनिकेत को कूकी के चरित्र पर संदेह था ? क्या वह यह सोच रहा ता कि यूनिवर्सिटी के किसी दूसरे लड़के के साथ उसका चक्कर चल रहा है ? अगर ऐसा नहीं तो फिर अनिकेत ने इतना नाटक क्यों किया ? मगर अनिकेत  ने कूकी को पूरी तरह से नहीं छोड़ा था। आखिरकर अनिकेत ही कूकी का  प्रारब्ध  था। कूकी के एक छोटे से पत्र का उत्तर अनिकेत ने दिया और तब से फिर दोनों एक दूसरे के साथ जुड़ गए थे।

              जहाँ अनिकेत कूकी की युवावस्था का प्रेमी था वहीं शफीक उसका अधेड़ उम्र का प्रेमी था। कई बार कूकी ने इस बात का अहसास किया था, जब भी वह अनिकेत की बात छेड़ती थी तब शफीक या तो उस बात का उत्तर नहीं देता था या फिर उस बात को बदल देता था। ना तो अनिकेत के विषय में वह कोई दिलचस्पी दिखाता था और ना ही  कुछ  पूछने के लिए उत्साह। वह इस तरह व्यवहार करता था जैसे कूकी के जीवन में अनिकेत का कोई अस्तित्व ही नहीं है। उसके ध्यान में वहाँ केवल दो ही प्राणी हैं - शफीक और उसकी रुखसाना यानि कूकी।

              कभी-कभी उसे लगता था, शफीक अनिकेत से  ईर्ष्या   करता है। यह बात दूसरी थी, वह उसके बारे में कभी भी सीधे नहीं लिखता था। कभी-कभी कूकी अपने बीते दिनों के प्रेम-प्रसंग का जिक्र कर अनिकेत के प्रेम-पत्रों का उदाहरण देकर लिखती थी तो शफीक भावुक होकर लिखने लगता था, "अनिकेत की तुलना में मेरा प्रेम ज्यादा महान, व्यापक और शाश्वत  है।"
              तुम्हारा प्रेम,
              मेरी आत्मा की धधकती एक ज्वाला है,
              तुम्हारा प्रेम,
              मेरी आत्मा को उर्ध्वगामी बनाने
              और पूर्णता प्रदान करने वाला है।
              क्योंकि तुम मेरी जिंदगी हो,
              मेरी दुनिया हो,
              तुम्हारे बिना मैं कहीं भी नहीं,
              तुम हर पल मेरे साथ
              मेरे सपनों के भीतर हो।
              तुमने मुझे एक नया जीवन प्रदान किया है
              तुम्हारा लुभावना सौंदर्य
              ले जाता है खींचकर मुझे
              एक अनोखे ब्राह्मांड  के भीतर।
              मेरी हर धड़कन में तुम्हारा प्रेम बसा है।
              मेरी आत्मा के संगीत में  तुम्हारे  प्रेम की धुन बजती है।
              तुम हर दिन हरपल प्रेम को एक नया संगीत देती हो।
             मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूँ
              और जीवन भर करता रहूँगा।
              तुम्हारा पाक प्रेम
              हरपल मेरे दिल  में
              मेरी आत्मा में
              तब तक बंधा रहेगा
              मौत भले ही
              हमें दूर कर दें
              मगर मरने के बाद भी
              फिर एक बार मिलेंगे हम
              जन्नत में
              मरने के बाद।

              शफीक लिखता था, "एक दिन मैं तुम्हें ले जाऊँगा। मेरे बुलाने पर तुम आओगी न ? उस समय अगर तुम ना नुकर  करोगी तब भी मैं नहीं मानूँगा। मैं यहाँ से पेरिस जाने के लिए कोशिश कर रहा हूँ। वहाँ कोलम्बिया यूनिवर्सटी में प्रोफेसर का एक पद खाली है। उसके लिए मैने आवेदन पत्र भरा है। मुझे यह अच्छी तरह मालूम है उस पोस्ट को पाना मेरे लिए इतना आसान नहीं है। बहुत टफ कम्पीटीशन होगा। होगा न ? फिर भी मैं  तुम्हारी  खातिर एक बार जरुर कोशिश करूँगा। उसके लिए मुझे इस्लामिक आर्ट पर एक  पैराथीसिस  सबमिट करना पडेगा। पता नहीं, वे लोग मेरी  पैराथीसिस  को एकसेप्ट करेंगे या नहीं ? तुमने कभी दुनिया की सबसे प्रसिद्ध आर्ट गैलेरी लॉवर के बारे में सुना है ? मैं तुमको मेरे साथ वहाँ ले जाऊँगा। हम दोनो आराम से उस गैलेरी में घूमेंगे। मेरे साथ वहाँ घूमना पसंद करोगी न ? मेरे दिल की एक तमन्ना है वहाँ मैं सबके सामने तुम्हारा चुम्बन लूँ। ओह, तुम्हारे खूबसूरत क्रीमसनरेड लिपिस्टिक कोटेड  लिप्स.....। ओह, आई एम डाइंग फॉर योर लिप्स।"

              वह आदमी फिर से सपने दिखाने लगा और खुद सपनों की दुनिया में गोते लगने लगा। कूकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि पेरिस की सैर कर पाएगी या नहीं। वहाँ वह एफिल टॉवर के ऊपर चढ़कर पेरिस शहर को देख सकेगी या नहीं ? उसे क्या पता, वहाँ के किसी बगीचे में एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर शफीक के साथ बैठ पाएगी या नहीं ? लेकिन उसके बारे में सपने देखने में क्या खर्च होता है। उम्र के जिस पड़ाव पर लोग दुनियादारी को लेकर चिंतित रहते हैं, उम्र के उसी पड़ाव पर कूकी सपनों के तानें बुन रही थी। कुछ क्षण के लिए उसे बहुत अच्छा लगता है जब वह अपने चारों तरफ की दुनिया को भूल जाती है और एक काल्पनिक दुनिया में नई-नई संभावनाओं को तलाशती है। जीवन का अंत कहने से जीवन का अंत नहीं हो जाता है, किसी भी पल किसी भी समय एक नया जीवन प्रारम्भ हो सकता है।

              शफीक ने लिखा था, "मैने उस महान पेंटिंग का काम शुरु कर दिया है, जिसके लिए मैं आज तक तरस रहा था। रुखसाना, तुम मेरी एक प्रेरणा हो। मुझे छोड़कर कभी मत जाना। तुम जानती हो, तुम्हारा प्रेम और तबस्सुम का दुख मेरी सृजनशीलता में वृद्धि करते हैं। तबस्सुम का दुख मुझसे  बर्दाश्त  नहीं होता है और तुम्हारे प्यार के बिना मैं जिन्दा नहीं रह सकता हूँ। तुम्हारे बिना इस दुनिया में मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। तुम मुझे छोड़कर मत जाना। तुम्हारे लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ। तुम्हें पाने के लिए मैं दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच सकता हूँ। तुम्हें पाने के लिए मैं आमरण इंतजार कर सकता हूँ। रुखसाना, बस, तुम मुझे छोड़कर मत जाना।

              रुखसाना, अभी तक मैने तुम से कोई भी बात नहीं छुपाई है। तुम मुझसे अलग नहीं हो, बल्कि मेरे परिवार का हिस्सा हो। क्या-क्या हुआ तबस्सुम के साथ, क्या मैं तुमसे छुपा पाऊँगा ? जब से तुम मेरे जीवन में आई हो, मेरी तकदीर ही बदल गई। तबस्सुम हँसमुख रहने लगी, उसको खुश देखकर मैं भी खुश रहने लगा। तुम मेरा सौभाग्य हो। मुझे अकेले भँवर में छोड़कर कहीं चले जाने की बात कभी भी मत सोचना।"

              कूकी ने उत्तर दिया था, "तुम्हारे दिल में हमेशा मुझे खोने का डर क्यों सताता है ? तुमको छोड़कर मैं कहाँ जाऊँगी ? तुम तो मेरे प्रारब्ध हो। मैं नहीं जानती, जीवन की डोर मुझे किस तरफ ले जा रही है ? मैं तो  यह  भी नहीं जानती, कौनसा प्यार क्षणिक है और कौनसा चिर-स्थायी ? मुझे कुछ भी पता नहीं, मैं किसी मोह या भ्रम की मरीचिका के पीछे भाग रही  हूँ  अथवा किसी पूर्णता की तरफ अग्रसर हो रही हूँ। मैं कुछ भी नहीं जानती, शफीक, कुछ भी नहीं जानती। मुझे यह भी पता नहीं, आने वाली सुबह तक मैं इस सुंदर पृथ्वी का एक हिस्सा भी रहूँगी या नहीं। मुझे कहाँ मालूम, मैं सरहद पारकरके  तुम्हारी धरती पर या तुम सरहद पारकर मेरी धरती पर पाँव रख पाओगे या नहीं। मुझे तो यह भी ज्ञात नहीं कि समय के साथ बर्लिन क्यों दो भागों में बँट जाता है और फिर समय के साथ मिल भी जाता है। मैं तो यह भी नहीं जानती कि 'बिग बेंगथ्योरी ' पर विश्वास  करने वाले वैज्ञानिक अचानक भगवान के ऊपर क्यों विश्वास  करने लग जाते हैं। मुझे तो इस बात का भी पता नहीं, भगवान का अवतार कहा जाने वाला सन्यासी अपने जीवन के अंतिम चरण में एक वेश्या के घर का आतिथ्य क्यों स्वीकार करता है। मुझे बहुत सारी बातें मालूम नहीं है, शफीक।"

              "जब तुम्हें पता नहीं है तो फिर किसको पता होगा ?" शफीक ने लिखा था।

              "तुम तो देवी हो। तुम तो एक फरिश्ता हो। आइ  गेज अपोन  योर ब्यूटी। आइ थिंक माइसेल्फ नेवर आइ हेव सीन एन एंजिल फ्लाई सो लो।"


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