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               "मीट माइ वाइफ " अनिकेत ने हाथ में कोल्ड ड्रिंक्स  लिए हुए  ध्यान से गजल सुनती हुई कूकी का परिचय  अपने बॉस से करवाया था।
              कूकी की आँखों मे कई सवाल थे। उसने हाथ जोड़कर अनिकेत के दोस्त को नमस्कार किया। उस सज्जन आदमी ने कूकी से पूछा, "शनिवार की पार्टी मे आप कहीं दिखाई नहीं दी ?"
              "इसे हल्ला-गुल्ला, भीड़-भाड़ पसंद नहीं है। इसलिए पार्टियों में बहुत कम आती-जाती है।" कूकी की तरफ से अनिकेत ने उत्तर दिया था।
              "ओह, यह बात है। लेकिन क्यों ? जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण  इतना नकारात्मक क्यों है ? कुछ पलों की जिंदगी है, उसे अच्छी तरह से  जी लेना चाहिए।"
              कूकी से आखिरकार  रहा नहीं गया। न चाहते हुए भी उसे बोलना ही पड़ा , "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। बच्चों की पढ़ाई की वजह से बाहर निकलना थोड़ा कम हो रहा है।"
              "मतलब ?" वह सज्जन आश्चर्य चकित होकर उसकी तरफ देखने लगे। ठीक उसी समय अनिकेत का दूसरा दोस्त खोसला उधर पहुँच गया। कूकी उनको नमस्कार कर बात करने लग गई।
              वे सब  लोग इधर-उधर की बातें करने  लगे । कूकी पनीर का पकोड़ा खाते- खाते धीमे-धीमे संगीत पर बज रही गजल सुनने में व्यस्त हो गई । ठीक उसी समय मिसेज शर्मा उसके पास पहुँचकर बच्चों की कोचिंग के बारे में बात करने लगी, "बेटे को कौन-सी कोचिंग में भर्ती करवाया है ?  मेरी  बेटी तो इस शहर के नामी-गिरामी कोचिंग सेंटर में पढाई कर रही है।"बात-चीत में मशगूल होकर वह यह बताने लगी कि अमुक आदमी का बेटा पढाई  पूरी करके   आस्ट्रलिया  चला गया है  और अमुक  औरत की बेटी शादी करके अमेरीका चली गई।
              उसी समय कूकी की पहले वाले सज्जन से फिर मुलाकात हो गई।  उसने  हँसते हुए  पूछा , "मैडम, आप जा रही हैं ?"
              "जी, जी हाँ, मैं अब जा रही हूँ।" सिर हिलाते हुए कूकी ने कहा।
              "मैडम, कभी हमारे घर भी तशरीफ लाइए  ।" उसने कहा।
              "जरुर, अगले हफ्ते।" अनिकेत ने उत्तर दिया।
              एक दूसरे को  शुभरात्रि कहकर उन्होंने एक दूसरे से विदा ली। जबकि बच्चें वहाँ कुछ और देर रुकना चाहते थे। मगर अनिकेत के सामने उनकी कुछ भी नहीं चली।
              "वह महाशय कौन थे, जिनके साथ अभी कुछ समय पहले मेरा परिचय करवाया था ? मैं तो उनसे पहले कभी मिली नहीं थी।" कूकी ने अनिकेत से प्रश्न किया।
              "चौहान, मेरा इमिडिएट बॉस।"
              "हे भगवान ! मैं तो सोच रही थी कि आपके साथ वाला ही कोई  आफिसर होगा। मुझे आपने बताया क्यों नहीं ?"
              "क्यों ? अगर बता भी देता तो तुम क्या कर लेती ?" कहते हुए अनिकेत ने एक व्यंग्य-बाण छोड़ा था।
              अपनी अंगुलियों से इशारा करते हुए कूकी ने अनिकेत से कहा, "देखो, मुझसे उल्टी-सीधी बातें मत करो। बच्चों का तो थोड़ा-बहुत ख्याल करो।"
              अनिकेत पहले की तरह खिसिया कर हँस रहा था। तभी उसे लगने लगा कि उसकी  मारुति  कार में कुछ कचरा आ गया है।
              "क्या हुआ ?" कूकी ने पूछा।
              "लग रहा है गाड़ी का क्लच काम नहीं कर रहा है।"
              कुछ  दूर चलकर  गाड़ी रुक गई।
              "क्या हुआ, पापा ?"  बड़ा  बेटा   पीछे वाली सीट से अपना मुँह बाहर निकालकर कहने लगा।
              "चुपचाप बैठ न।" अनिकेत ने उत्तर दिया।
              फिर से उसने गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की, मगर कार स्टार्ट नहीं हुई। फिर उसने कार को पीछे से कुछ दूरी तक धक्का दिया,  मगर  कार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी, मानो वह रुठ गई हो। अनिकेत  कार का बोनट  खोलकर उसे ठीक करने लगा। फिर एक बार उसने कार  स्टार्ट करने की कोशिश की। मगर इस बार भी कार स्टार्ट नहीं हुई। आधे घण्टे से ज्यादा का समय सड़क पर ही बीत गया था। आस-पास में कोई गैरेज भी नजर नहीं आ रहा था, जिससे वह किसी  मैकैनिक को बुलाता।  अनिकेत  तनावग्रस्त हो गया था। देखते-देखते वह  अपने नाखूनों को दाँत से काटने लगा। तभी अनिकेत के छोटे बेटे ने कहा "पापा, अब हम घर कैसे जाएँगे ? कोई लिफ्ट लेकर ?"
              "चुप रहो।" कूकी ने छोटे बेटे को डाँटा। अनिकेत के ऊपर भी उसे गुस्सा आ रहा था। उसने कई बार अनिकेत को कहा था या तो इस गाड़ी को किसी गैरेज में भेजकर ठीक करवा लो या फिर इसको बेचकर कोई नई गाड़ी खरीद लो। मगर अनिकेत कब उसकी बात सुनने वाला था ? अब भुगतो।
              चुप्पी को तोड़ते हुए बड़े बेटे ने कहा, "अब क्या करेंगे ?"
              सड़क पर खड़ा होकर अनिकेत  इसी बारे में सोच रहा था। रात होती जा रही थी और गाड़ियों का सड़क पर आना-जाना भी धीरे-धीरे कम होता जा रहा था। अनिकेत कहने लगा, "एक काम करो।अगर अपनी कॉलोनी  का  कोई व्यक्ति इधर से गुजरेगा , तो तुम सब  उसके साथ चले जाना । मैं गाड़ी ठीक- ठाक करवाकर घर आ जाऊँगा।"
              तभी दूर से एक आटोरिक्शा आता  दिखाई दिया।  अनिकेत को ऐसा लगने लगा मानो किसी डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। अनिकेत ने हाथ दिखाकर आटोरिक्शा को रोका। और उन्होंने इस बात का निर्णय लिया कि वे सभी एक साथ आटो में बैठकर घर चले जाएँगे , फिर अनिकेत किसी मेकेनिक को  लेकर वापिस  कार के पास चला आएगा ।
               ऑटोरिक्शा  वाले ने वहीं सड़क पर कार को छोड़कर जाने के लिए मना किया। उसका कहना था कि सड़क पर इस तरह लावारिस कार छोड़कर जाने पर पुलिस कार का चालान काटकर आपको जेल भेज सकती है। अच्छा तो यही रहेगा आप अपनी कार को आटो के पीछे बाँध दीजिए, ताकि खींचकर ले जाया जा सके। केवल पाँच किलोमीटर दूरी ही तो तय करनी है। फिर उस आदमी ने गाड़ी को अपने रिक्शे के भीतर रखी हुई रस्सी के साथ  अपने आटो से बाँध दिया।
              आटो उन सब को  गाड़ी में बैठे हुए  खींचते हुए ले जा रहा था।अभी वह ऑटो सिर्फ  एक-दो किलोमीटर की  दूरी तक ही  खींचकर  ले गया   होगा   कि तभी उसकी  टोशन वाली रस्सी टूट गई। आटो के ड्राइवर ने दोबारा से  कार को आटो के साथ  बाँधा। फिर वह बोला  "आप लोग कार से उतर जाइए। वजन ज्यादा होने की वजह से रस्सी फिर से टूट जाएगी। आप लोग मेरे आटो में बैठ जाइए।"
              आटो ने बड़ी मुश्किल से खींचते-खांचते आखिरकर किसी तरह  उन्हें घर पहुँचा ही दिया , कूकी को बहुत थकान लग रही थी, भीतर ही भीतर वह  अपमान  भी महसूस कर रही थी । बच्चें भी इस घटना से दुखी हो गए थे। रास्ते भर बहुत  परेशान कर रहे थे। घर पहुँचने के बाद बड़ा बेटा कहने लगा, "मम्मी, पापा से  कहिए कि उस खटारा गाड़ी को किसी कबाड़ी के यहाँ बेच दे।"
              "चुप कर , पापा सुन लेंगे तो डाँट पड़ेगी।" जैसे-तैसे कर कूकी ने बड़े बेटे को शांत तो करवा दिया, मगर उसके मन का असंतोष अभी भी कम नहीं हुआ था।
              पिछले साल जब बहुत बारिश हुई थी,तब  उनके इलाके में घुटनों तक पानी जमा हो गया था। सारा पानी उनके इलाके में ही जमा होता था  क्योंकि वह  सिटी का सबसे निचला इलाका था। कार पूरी तरह  पानी में डूब गई थी। पानी  घटने के बाद कार की हालत खस्ता हो गई थी। पूरी कार में जहाँ-तहाँ जंग लग गया था व सीट का तो  पूरी तरह से कचूमर निकल  गया था । अनिकेत ने उस कार की बिल्कुल भी मरम्मत नहीं करवाई थी , उसका कहना था,कि  इसकी मरम्मत पर पैसा खर्च करना व्यर्थ है, बेहतर यही होगा, हम एक नई गाड़ी खरीद लेंगे। मगर अब तक भी  उसने कोई नई गाड़ी नहीं खरीदी थी ।
              छोटे बेटे ने कहा, "देखिए न मम्मी, अंकुर के घरवालों ने हमारी कार को आटो से  खिंचते हुए देखा है। कल सब मुझे स्कूल में ताना मारेंगे और कहेंगे, कब तक खटारा गाड़ी में बैठते रहोगे। प्लीज मम्मी, अगली बार मुझे उस गाड़ी में बैठने के लिए मत कहना।"
              तभी बड़े बेटे ने अपनी सहमति जताते हुए कहा, "वर्मा अंकल ने अभी-अभी एक सेंट्रो कार खरीदी है। कॉलोनी में सबके पास नई-नई गाड़ियाँ हैं एक से बढ़कर एक। केवल हमारे पास ही  यह पुरानी गाड़ी है।"
              अनिकेत  का  मन पहले से ही गुस्से से भरा हुआ था। बच्चों की बात सुनते ही  उसका दबा हुआ गुस्सा आग के गोले के रुप में फट पड़ा। आव  देखा ना  ताव, हाथ में डंडा लिए बच्चों पर टूट पड़ा।
              "बदतमीज, पढ़ाई तो ढंग से होती नहीं है। गणित में कभी भी अस्सी से ऊपर नंबर नहीं आते  हैं और घूमने के लिए चाहिए सेन्ट्रो कार।"
              कूकी बीच-बचाव करते हुए कहने लगी, "बच्चें अभी नासमझ हैं। उन्हें इन चीजों के बारे में क्या जानकारी है ? उन्हें डंडे से पीटते हुए तुम्हें शर्म नहीं आ रही है। कॉलोनी के कुछ लोगों ने जब  उनका मजाक उड़ाया था   तो उन्हें खराब लगा, इसलिए उन्होंने कह दिया। इसमें बच्चों को पीटने की क्या बात है ?"
              "तुम बच्चों की ज्यादा तरफदारी मत किया  करो । बदजात, तुमने ही  इन  दोनों को  सिर चढ़ाकर बिगाड़ दिया है।" कहते-कहते अनिकेत ने कूकी को भी दो-चार डंडे जड़ दिए। अचानक डंडे की मार से कूकी चिल्ला उठी, "ऊई माँ, मैं मर गई, मुझे मत मारो, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?" मगर  अनिकेत कहाँ रुकने वाला था। धड़ाधड़ सिर से लेकर पाँव तक डंडे मारता ही गया। आखिर थक हारकर उसने वह डंडा फेंक  दिया।
              कूकी सुबक-सुबककर रोने लगी। रोते-रोते उसने देखा, सामने वाले फ्लैट की खिड़की खुली हुई थी। माँ को मार खाता देख बच्चें अपने-अपने कमरे में दुबक गए मगर उनकी आँखों में नफरत और क्रोध के भाव स्पष्ट झलक रहे थे।
              कूकी के पूरे शरीर पर जहाँ-तहाँ डंडे की मार के लाल निशान दिखाई दे रहे थे। उसकी आँखों से आँसू मानो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। पूरा शरीर दर्द से  कराह रहा था।तब कूकी  अपमान के घूँट पीकर रह गई थी ।  उसकी घर छोड़कर भाग जाने की इच्छा हो रही थी। पल्लू को मुँह में ठूँसकर बैठ गई थी कूकी। हिचकियों के ऊपर हिचकियाँ आ रही थी। उसे मन ही मन अनिकेत से नफरत होने लगी। छिः !  बहुत  पढ़ लिखरकर  अच्छी नौकरी पाने से भी  क्या फायदा ? जब किसी के मन से  इंसानियत ही खत्म हो  गई हो । बीच-बीच में अनिकेत कितना खूंखार हो जाता था  कि  उसका दया भाव  बिल्कुल ही मर जाता था । अच्छे-बुरे का ख्याल छोड़कर वह हैवान हो जाता था । कभी-कभी तो कूकी के मन में इच्छा होती थी, कि वह आत्म-हत्या कर लें। मगर दो मासूम बच्चों को निर्दयी अनिकेत के पास छोड़कर कैसे मर सकती थी ?
              कूकी ने देखा, बिस्तर पर लेटे हुए बड़ा बेटा इधर-उधर करवटें बदल रहा था। कूकी ने कहा, "लाइट बंद कर रही हूँ। आराम से सो जाओ।"
              बेटे ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वह बहुत ही गंभीर और परिपक्व लग रहा था। चेहरे से ही लग रहा था कि वह अपने बाप पर गया है। जब भी उसे क्रोध आता था, वह सारा क्रोध कूकी पर उतारता था। घर  का   सारा 
              बेटे ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वह बहुत ही गंभीर और परिपक्व लग रहा था। चेहरे से ही लग रहा था कि वह अपने बाप पर गया है। जब भी उसे क्रोध आता था, वह सारा क्रोध कूकी पर उतारता था।  घर  का   सारा सामान इधर-उधर फेंककर तोड़ देता था। तकिया काटकर उसकी रुई बिखेरने लगता था।  टेबल पर कूकी के   पड़े हुए लेमिनेटेड़    फोटो पर  केरोसिन   ड़ालकर  आग लगा  देता था। घर की दीवारों पर जहाँ-तहाँ अंडे फेंककर पूरा घर खराब कर देता था। पूजाघर से भगवान की मूर्ति और बाकी पूजा का सामान इधर-उधर फेंककर सब तहस-नहस कर देता था। कूकी को मन ही मन लगता था, वह बड़ा होकर जरुर अनिकेत को मारने लगेगा।
             कूकी अनिकेत से जितना डरती थी उतना ही  बड़े बेटे से  डरती थी  । लेकिन वह जानती थी  अब जबकि  उसका गुस्सा अनिकेत के ऊपर है, तब भी वह अपनी  माँ को सांत्वना देने के लिए उठकर नहीं आएगा। छोटा बेटा माँ के प्रति अपनी सहानुभूति जताकर सोने के लिए जा चुका था।
              कूकी जब  अपने कपड़े बदलकर बाथरुम से बाहर निकली तो उसने देखा अनिकेत ने दोनों कमरों में  बेड  के ऊपर मच्छर दानी लगा दी थी।उसकी  अनिकेत के पास जाकर  सोने की इच्छा बिल्कुल नहीं हो रही थी। फिर भी बिना कुछ बोले वह अनिकेत के पास जाकर सो गई। अनिकेत भी चुपचाप सोता रहा। पता नहीं, उसे कब नींद  आ गई। पता नहीं, तब रात कितनी हुई होगी। जब अचानक कूकी की नींद टूट गई। उसने महसूस किया अनिकेत उसके जख्मों पर मल्हम लगा रहा था। कूकी आँखें बंद करके ऐसे ही पड़ी रही। मगर कब तक वह आँखें बंद करके  बिस्तर पर पड़ी रहती ? अनिकेत का स्पर्श पाकर उसकी आँखें आँसुओं  से भर आई। और पूरी रात सोचते-सोचते यूँ ही कट गई। उसे सारी रात नींद नहीं आई।

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